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‘परदेसियों से ना अंखियां मिलाना… !’

By -

-ध्रुव गुप्त

पिछली सदी के पांचवे और छठे दशक की प्यारी, मासूम, गुड़िया जैसी अभिनेत्री नंदा की याद है आपको ? उस दौर की कई महान अभिनेत्रियों के बीच अपने भावप्रवण और संवेदनशील अभिनय से एक अलग मुक़ाम बनाने वाली नंदा ने भारतीय स्त्री के दबे-सहमे चरित्र को जितनी शिद्दत से जिया था, उसकी मिसाल मिलनी मुश्क़िल है। उनका शालीन व्यक्तित्व, भोला चेहरा और बोलती आंखें परदे पर उनके होने का गहरा अहसास छोड़ती थी। आजीवन अकेली रही नंदा की पहली फिल्म थी 1955 की ‘बंदिश’, लेकिन उन्हें शोहरत मिली अगले साल आई वी शांताराम की फिल्म ‘तूफ़ान और दीया’ से। अपने तीन दशक लंबे फिल्म कैरियर में नंदा ने कई यादगार फिल्में दी, जिनमें प्रमुख थीं – जब जब फूल खिले, आशिक़, भाभी, बरखा, छोटी बहन, चांद मेरे आजा, उसने कहा था, काला बाज़ार, क़ानून, हम दोनों, चारदीवारी, आज और कल, नर्तकी, तीन देवियां, गुमनाम, आकाशदीप, नींद हमारी ख्वाब तुम्हारे, जुआरी, अभिलाषा, इत्तेफ़ाक, धरती कहे पुकार के, अधिकार, आहिस्ता आहिस्ता, मजदूर और प्रेम रोग। जन्मदिन पर स्व. नंदा जी को भावभीनी श्रद्धांजलि, उनकी फिल्म ‘आज और कल’ के साहिर के लिखे एक गीत की पंक्तियों के साथ !

मौत से और कुछ मिले न मिले
ज़िन्दगी से तो जान छूटेगी
मुस्कराहट नसीब हो कि न हो
आंसुओं की लड़ी तो टूटेगी
हम न होंगे तो ग़म किसे होगा
ख़त्म ये ग़म की दास्तां होगी

मौत कितनी भी संगदिल हो मगर
ज़िन्दगी से तो मेहरबां होगी !
(फेसबुक वॉल से साभार)

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