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अन्तर्राष्ट्रीय योग दिवस के राष्ट्रीय सन्दर्भ

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–डा. मोहन चन्द तिवारी

॥उत्तराखण्ड का सिद्ध ‘द्रोणगिरि’ शक्तिपीठ
सन्त-महात्माओं व योग साधकों की तपोभूमि॥

पुरातन काल से ही सिद्ध द्रोणगिरि वैष्णवी शक्तिपीठ योग-साधना को सिद्धि प्रदान करने वाली तपोभूमि के रूप में भी प्रसिद्ध रहा है। यहां ऋषि-मुनि कठोर तपों की साधना करते आए हैं। उपनिषदों और आरण्यक ग्रन्थों के काल में सृष्टि विज्ञान के गूढ दार्शनिक सिद्धान्तों की तत्त्व चर्चा द्रोणगिरि की गिरि-कन्दराओं में ही हुई थी जिसके परिणामस्वरूप ‘कठोपनिषद् तथा ‘श्वेताश्वतरोपनिषद्’आदि उपनिषदों की रचना हुई। योगसाधना की दृष्टि से ‘देवात्मशक्ति’ के तीन पारिभाषिक रूप हैं – देव, आत्मा और शक्ति। समाधि की अवस्था में साधक जब कुण्डली जागरण की प्रक्रिया द्वारा परमात्मा का साक्षात्कार करता है तब परमतत्त्व देदीप्यमान होने के कारण ‘देव’ कहलाता है, प्रत्येक जीवधारी में विद्यमान रहने के कारण यह ‘आत्मा के रूप में प्रसिद्ध है और ऊर्जा प्रदान करने के कारण ‘शक्ति’ के रूप में व्यवहृत होता है। चितिशक्ति, पराशक्ति, ज्ञानशक्ति, क्रियाशक्ति, जगन्माता, जगदम्बा आदि अनेक नाम इसी ‘देवात्मशक्ति’के ही पर्यायवाची नाम हैं।

‘श्वेताश्वतरोपनिषद्’ के इस गहन दार्शनिक तत्त्वचिन्तन से यह भी ज्ञात होता है कि योगसमाधि के द्वारा साधक न केवल परमेश्वर के आह्लादक रूप की अनुभूति करता है बल्कि सृष्टि के गूढ दार्शनिक रहस्यों का भी उसे साक्षात्कार होने लगता है। मनुष्य किसी बाहरी शक्ति से शक्तिशाली नहीं बन सकता बल्कि अपने अहंकार रूपी पशु की बलि चढ़ाकर ही वह ‘चितिशक्ति’रूपा जगदम्बा का कृपाप्रसाद प्राप्त कर सकता है। तप तथा समाधि के द्वारा शक्ति की उपासना सम्भव है। प्राचीनकाल से ही ऋषि-मुनि द्रोणगिरि शक्तिपीठ में योग-साधनाओं द्वारा अपने भीतर ही शक्ति के अनन्त भण्डार को जागृत करने में सफल रहे हैं।

सूचना-प्रसारण का एक महत्त्वपूर्ण वैज्ञानिक सिद्धान्त यह है कि ध्वनि तथा प्रकाश की तरंगे जितनी ऊंचाई से सम्प्रेषित की जाएंगी वे निर्बाध गति से उतने ही लम्बे तथा विस्तृत क्षेत्र में संप्रसारित होंगी। हिमालय स्थित द्रोणगिरि शक्तिपीठ ऊंचाई पर स्थित ऐसा ही स्वयं प्रकृति द्वारा निर्मित ऊर्जा का भण्डार है। पुरातन काल से ही ऋषि-मुनियों और सिद्ध पुरुषों ने भारतीय अध्यात्म योग की ऊर्जस्वी तरंगों का यहां से समग्र विश्व में सम्प्रेषण किया है। स्वामी सत्येश्वरानन्द ने इस तथ्य का भी रहस्योद्घाटन किया है कि संयुक्त राष्ट्र अमरीका स्थित कैलिफोर्निया में ‘सन-डाइगो’ नामक शक्तिपीठ की स्थापना की प्रेरणा 9 जनवरी, 1983 को महामुनि बाबा, लाहिड़ी महाशय आदि योगियों के सत्परामर्श से द्रोणगिरि शक्तिपीठ से ही मिली थी।
उत्तराखण्ड के प्रसिद्ध सन्त-महात्माओं में श्री हैड़ाखान बाबा, श्री नीम करोली बाबा, श्री सोम्बारी बाबा, श्री हरनारायण स्वामी, श्री राम बाबा, महात्मा लक्ष्मीनारायण दास, श्री नानतिन बाबा, श्री बलवन्त गिरि, श्री पवन गिरि आदि अध्यात्म योगियों की साधना स्थली भी द्रोणगिरि क्षेत्र है। इन योगी-महात्माओं ने द्रोणगिरि शक्तिपीठ की दिव्य ऊर्जा से प्रेरित होकर उत्तराखण्ड के विभिन्न क्षेत्रों में अध्यात्म विद्या की अलख जगाई और पूरे क्षेत्र की सांस्कृतिक अस्मिता का पुनरुद्धार भी किया।

महावतार बाबा ने द्रोणगिरि क्षेत्र में श्री हैड़ाखान बाबा को ‘मानस योग, श्री नीम करोली बाबा को ‘मन्त्र योग’ और श्री सोम्बारी बाबा को ‘पाशुपत योग’की दीक्षा प्रदान की। तदनन्तर इन सन्त-महात्माओं ने कुमाऊं हिमालय के विभिन्न स्थानों में आश्रमों की स्थापना करके अध्यात्म योग का जन-जन तक प्रचार और प्रसार किया। श्री राम बाबा दुनागिरि के उन अध्यात्म पुरुषों में हैं जो 45 वर्ष के दीर्घकाल तक यहां तपश्चर्या करके ब्रह्मलीन हुए। श्री राम बाबा अध्यात्म जगत् के ऐसे पहुंचे हुए सन्त थे जिनकी ख्याति दूर-दूर तक फैली हुई थी। हरिद्वार में अनेक सन्त-महात्मा सिद्ध तपस्वी श्री रामबाबा से आशीर्वाद लेने की बाद ही साधकों को संन्यास मार्ग में दीक्षित करते थे। दुनागिरि शक्तिपीठ से आध्यात्मिक ऊर्जा ग्रहण करके आजीवन इसी क्षेत्र को अपनी साधना भूमि बनाने वाले अध्यात्म योगियों में ‘पाण्डुखोली’आश्रम के महात्मा श्री बलवन्त गिरि जी का नाम भी विशेष रूप से उल्लेखनीय है। श्री बलवन्त गिरि जी ने कठोर अध्यात्म साधना के तपोबल से हिंसक पशुओं से व्याप्त ‘पाण्डुखोली जैसे भयावह स्थान को स्वर्गाश्रम के तुल्य दर्शनीय स्थान बना दिया।

(मेरी पुस्तक ‘द्रोणगिरि : इतिहास और संस्कृति’‚ उत्तरायण प्रकाशन‚ दिल्ली, 2001,के चतुर्थ अध्याय पर आधारित लेख।)
आशा है कि उत्तराखंड के इस अति प्राचीन द्रोणगिरि क्षेत्र के आध्यात्मिक विकास के लिए भी उत्तराखंड सरकार ऐसी कार्ययोजना बनाएगी जिससे कि यह क्षेत्र न केवल भारत के योगसाधकों के लिए अपितु विश्व के योगसाधकों के लिए भी एक अन्तर्राष्ट्रीय योगसाधना केंद्र के रूप में विकसित हो सके। मां दुनागिरि के चरणों में प्रणामांजलि सहित सभी मित्रों को अन्तर्राष्ट्रीय योग दिवस के अवसर पर हार्दिक मंगल कामनाएं ।

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