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”लेखक-मुनमुन प्रसाद श्रीवास्तव
छठ पूजा को लेकर इस बार सोशल मीडिया में जो ट्रेंड देखने को मिला, वह इस बात का द्योतक है कि पूर्वांचल विशेषकर बिहार की छठ पूजा अब पूरी तरह ग्लोबल हो चली है। सबसे अच्छी बात तो यह दिख रही है कि बेहद पढ़ी लिखी और आधुनिक का तमगा पाने वाली बहुएं भी अब इस व्रत के पीछे आकर्षित हुई हैं, जो यह बताने के लिए काफी है कि छठ महापर्व की परंपरा सदियों से स्थापित थी और जब तक यह संसार रहेगा तब तक इसकी धूम रहेगी। वैसे, पर्व और त्यौहार को लेकर चली आ रही परंपराओं को यदि अक्षुण रखना है, तो युवा पीढ़ी को उसके महत्व, उससे जुड़े विश्वास और आस्था को उनकी ही शैली में समझाना होगा।
यूं तो दिवाली से पहले ही पूर्वांचल में छठ पूजा के पारंपरिक गीत गली मुहल्लों आदि में बजने शुरु हो जाते हैं, लेकिन कुछ साल पहले बिहार कोकिला के रुप में प्रसिद्ध लोक गायिका शारदा सिन्हा का एक छठ पूजा गीत में सात समुंदर पार छठ पर्व को दिखाया गया। इसे यू ट्यूब पर भी खूब देखा गया। व्हाट्स ऐप और फेसबुक पर भी लोगों ने इसे खूब शेयर किया।
इस वीडियो में विदेश में रह रहे बेटा-बहू को फोन पर बिहार से मां कहती है कि वह इस साल छठ नहीं कर पाएगी, इसलिए वह बिहार आने की अपनी टिकट कैंसिल कर दे। साथ ही वह इस बात को लेकर भी चिंतित है कि इस परंपरा को आगे कौन बढ़ाएगा। वह इस बात की कल्पना भी नहीं कर सकती कि अत्यंत उच्च शिक्षित बहु छठ करने की सोच भी सके। इस वीडियो में यह दिखाया गया है कि बेटे से फोन पर बात करने के बाद नाश्ता कर रही बहू यह सब सुनकर मन ही मन छठ का व्रत करने की ठान लेती है। जाग-जाग कर इंटरनेट पर छठ और उसके व्रत का विधान पढ़कर वह व्रत के पूजन की सारी तैयारी करती है।
दरअसल, यह वीडियो हमें यह सोचने के लिए विवश करता है कि नौजवान पीढ़ी को हम परंपराओं का वाहक क्यों नहीं समझते? क्यों हम उनको लेकर नकारात्मक छवि अपने भीतर घर कर लेते हैं। यदि बहू उच्च शिक्षित है, तो क्या व्रत करना या फिर परिवार की परंपरा को आगे बढ़ाने का काम वह क्यों नहीं कर सकती?
सच तो यह है कि कोई भी व्रत या त्यौहार हमें जोड़ने का संदेश देता है। छठ पूजा को तो महापर्व की संज्ञा दी गई है। छठ को लेकर कुछ साल पहले ही बिहार सरकार द्वारा तैयार किया गया एक विज्ञापन भावुक कर गया था। ‘कहीं छूट न जाए छठ’ शीर्षक से इस विज्ञापन में एक मां अपने बेटे से फोन पर छठ में आने की बात कहती है, लेकिन बेटा काम की बात कहकर आने से मना करता है फिर उसकी बहन से बात होती है। और वह अचानक हवाई जहाज से अपने घर पहुंच कर सब को हैरान कर देता है। सच तो यह है कि भारत का यह एकमात्र ऐसा पर्व है, जिसमें शामिल होने के लिए लोग अपने घरों को जाना पसंद करते हैं। किसी वजह से नहीं जा सकते, तो जहां रह रहे हैं वहीं इसे पूरी आस्था के साथ मनाते हैं। ऐसे में जरुरत इस बात की है कि हम अपनी युवा पीढ़ी को न केवल परंपराओं से जोड़ने को लेकर सकारात्मक सोचें, बल्कि उन पर विश्वास करके उनको आगे लाएं या फिर कुछ ऐसा करें कि वे आत्मचेतना से इसके लिए तैयार हों।
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