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योग को ‘योग’ ही रहने दें..!

By -

-ध्रुव गुप्त

योग भारतीय संस्कृति के महानतम अवदानों में एक है। योग कोई शारीरिक कसरत अथवा सिक्स पैक बनाने का साधन नहीं है। यह न कोई धर्म है, न धार्मिक कर्मकांड का हिस्सा। अपने मूल स्वरुप में यह आत्मा का विज्ञान है। अपने पहले चरण में यह अलग-अलग आसनों के माध्यम से देह को स्वस्थ, ऊर्जावान और परिष्कृत करता है। दूसरे चरण में यह ध्यान के माध्यम से हमें स्थान और समय से परे आयामों में ले जाता है जहां हम अपने स्वरुप यानी अपनी संचालक ऊर्जा से साक्षात्कार करते हैं। अगर कोई ईश्वर है तो राम, कृष्ण, महावीर, बुद्ध, ईसा में ही नहीं, हम सभी में उसका अंश है। इसीलिए हम सब ईश्वर के अवतार हैं। फ़र्क इतना ही है कि उन्होंने अपने भीतर के ईश्वर का साक्षात्कार कर लिया था, हमने अपनी अंतर्यात्रा अभी आरम्भ भी नहीं की है। योग इसी अंतर्यात्रा का साधन है। योगिराज शिव आदि योगी थे। योगेश्वर कृष्ण, बुद्ध, महावीर और पतंजलि ने योग को आगे बढ़ाया। हज़रत मुहम्मद ने नमाज़ में योग के सभी महत्वपूर्ण आसनों का समावेश कर इसे लगभग आधी दुनिया में फैला दिया।पिछले कुछ दशकों में तमाम पश्चिमी देशों में भी योग के प्रति आकर्षण बढ़ा है। यह इसकी बढती लोकप्रियता का ही दबाव था कि हाल में संयुक्त राष्ट्र ने हर साल 21 जून को दुनिया भर में योग दिवस के रूप में मनाने का निर्णय लिया। हमें इस बात पर गर्व होना चाहिए। दुख तब होता है जब योग का इस्तेमाल कुछ लोग अपना सियासी एजेंडा आगे बढ़ाने के लिए करते हैं और कुछ लोग सिर्फ इसलिए इसका मज़ाक उड़ाते है कि इसका प्रमोशन उनके राजनीतिक विरोधी कर रहे हैं। योग जैसे विज्ञान को राजनीति से मुक्त रखा जाना चाहिए।

सभी मित्रों को ‘अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस’ की बधाई !
(फेसबुक वॉल से साभार)

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