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लोक-आस्था का महानतम पर्व छठ

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लेखक – ध्रुव गुप्त

लोक-आस्था का महानतम पर्व छठ सन्निकट है। परसो ‘नहाय-खाय’ के साथ छठ व्रत के चार दिवसीय आयोजन का आरम्भ होने वाला है। हवा में धीरे-धीरे घुलने लगी है बचपन से परिचित तालाबों के भीड़-भाड़ वाले घाटों की वही पवित्र गंध जो ठेकुए की स्मृतियों से घुलमिल कर हर साल एक पाकीज़ा तिलिस्म रचती है। आज छठ का विस्तार समाज के सभी वर्गों तक और देश-दुनिया के कोने-कोने में है, लेकिन अपने मूल स्वभाव में यह बिहार और पूर्वी उत्तर प्रदेश के कृषि-प्रधान समाज द्वारा सूर्य की जीवनदायिनी शक्ति के प्रति कृतज्ञता-ज्ञापन का आयोजन है। हमारे अनगिनत देवी-देवताओं में से एक सूर्य ही हैं जो हमेशा हमारी नज़रों के सामने हैं। एक ऐसा भगवान जिसके अस्तित्व को प्रमाणित करने के लिए किसी तर्क की ज़रुरत नहीं। पृथ्वी पर जो भी जीवन है, उर्वरता है, हरीतिमा है, सौंदर्य है – वह सूर्य के कारण ही हैं। सूर्य न होते तो न पृथ्वी संभव थी, न जीवन और न प्रकृति का अपार सौंदर्य। इस पर्व में नदियों और तालाबों के तट पर गहरी आस्था में लीन लोगों को ताजा कृषि-उत्पादों के साथ डूबते और उगते सूर्य को अर्घ्य समर्पित करते देखना एक दुर्लभ अनुभव है।


ध्रुव गुप्त की फेसबुक वॉल से साभार

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