लेखक: ध्रुव गुप्त
हे लंकेश, एक बार पुनः भारतवासियों ने आपके दहन की तैयारियां पूरी कर ली हैं। हमारी संस्कृति में मरने वालों की सुख-सुविधाओं का ध्यान रखा जाता है। अतः आपको प्रसन्न करने के लिए आज श्री लंका के पर्वतों की सुगन्धित, स्वादिष्ट चाय ले आया हूं। मलाई मारके ! इसे बनाने में हमने उस निर्मल गंगाजल का प्रयोग किया है जिसे हमारी एक पूर्व सन्यासिनी मंत्री ने हजारों करोड़ की लागत से अभी पिछले वर्ष शुद्ध कराया था। इसे खौलाने में भारत भूमि के वर्तमान प्रयोगधर्मी सम्राट द्वारा आविष्कृत नाले के पवित्र गैस का प्रयोग हुआ है जिसपर हमारे देश के असंख्य बेरोजगार युवा आज पकौड़े तलकर धन-लाभ कर रहे हैं। मेरे हाथ में चाय की यह ऐतिहासिक केतली वही है जिसमें हमारे धर्मनिष्ठ सम्राट अपने बचपन के दिनों में चाय बेचते थे। चाय का कप हमारे यशस्वी वित्त मंत्रियों का रहस्यमय पात्र है जो प्रजा का एक-एक बूंद रक्त निचोड़ लेने के बाद भी आजतक नहीं भरा। आप चाय पी लें, फिर आपकी अनुमति हो तो मैं रामभक्त हनुमान आपसे एक प्रश्न करने का साहस करूं ! मेरे पार्श्व में खड़े प्रभु राम भी संभवतः मेरी जिज्ञासा से सहमत होंगे।
हे दशानन, सच तो यह है कि इस कलयुग में प्रभु राम का उपयोग भारतवर्ष में अब केवल राजनीति के लिए ही होता है। आपकी आत्मा टुकड़ों में बंटकर आज हमारी भारत भूमि पर शासन भी कर रही है और विपक्ष की भूमिका भी निभा रही है। कश्मीर से कन्याकुमारी तक देश के समस्त धर्मों के असंख्य आचार्यों और कोटि-कोटि लोगों के ह्रदय में भी आप ही बसते हैं। सच कहिएगा, अपने ही अनुयायियों के हाथों हर वर्ष जल मरने में कैसी अनुभूति होती है आपको ?
(ध्रुव गुप्त के फेसबुक वॉल से साभार)
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