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प्रकाश,आरोग्य व राष्ट्र की खुशहाली का पर्व दीपावली

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-डा.मोहन चंद तिवारी

दीपावली पूरे देश में लगातार पांच दिनों तक प्रकाशोत्सव के रूप में बड़े धूमधाम से मनाई जाती है। देश का कोना-कोना शरद् ऋतु में हरियाला और शस्य श्यामल नजर आता है।नई फसल से अन्न भंडार भरे रहते हैं। ऐसे सुखद ऋतुकाल में कृषक समाज धन और धान्य की देवी लक्ष्मी के भव्य स्वागत में जुट जाता है तथा नई फसल से बनवाए गए पकवानों से धान्य-लक्ष्मी की पूजा-अर्चना की जाती है। कार्तिक मास की कृष्णपक्ष की त्रयोदशी ‘धनतेरस’ के दिन से दीपावली महोत्सव का शुभारम्भ हो जाता है। 
इस बार धनतेरस की तिथि को लेकर लोगों के बीच कंफ्यूजन है।लोग असमंजस में हैं कि आखिर धनतेरस की खरीदारी और पूजा 12 नवंबर को करना शुभ है या 13 नवंबर को।ज्योतिषाचार्यों के अनुसार,12 नवंबर को रात 9.30 बजे तक द्वादशी तिथि है। इसीलिए गुरुवार के दिन धनतेरस की पूजा नहीं की जा सकती।13 नवंबर शुक्रवार को शाम को 5 बजकर 59 मिनट तक त्रयोदशी है।इस स्थिति में प्रदोष काल होने के कारण धनतेरस की पूजा13 नवंबर को करना ही शुभ है।

धनतेरस की तिथि और शुभ मुहूर्तत्रयोदशी तिथि प्रारंभ: 12 नवंबर 2020 को रात 09 बजकर 30 मिनट से त्रयोदशी तिथि समाप्‍त: 13 नवंबर 2020 को शाम 05 बजकर 59 मिनट तकधनतेरस पूजा मुहूर्त: 13 नवंबर 2020 को शाम 05 बजकर 28 मिनट से शाम 05 बजकर 59 मिनट तक,अवधि 30 मिनट।प्रदोष काल:13 नवंबर 2020 को शाम 05 बजकर 28 मिनट से रात 08 बजकर 07 मिनट तक।

धनतेरस के दिन धन के देवता कुबेर‚मृत्यु के देवता यमराज की पूजा की जाती है तथा धन्वंतरि जयन्ती भी मनाई जाती है। मान्यता है कि इस दिन धन्वतरि वैद्य समुद्रमंथन के समय अमृत का कलश लेकर प्रकट हुए थे। धनतेरस के दिन सोना-चाँदी खरीदना शुभ माना जाता है।नए बरतन भी खरीदे जाते हैं। ऐसी भी मान्यता है कि धनतेरस की रात्रि के समय यम के लिए आटे का दीपक जलाकर घर के द्वार पर रखने से अकाल मृत्यु से रक्षा होती है।
कार्तिक मास के कृष्णपक्ष की चतुर्दशी नरक चतुर्दशी या छोटी दीपावली के रूप में मनाई जाती है।इस दिन श्रीकृष्ण की पूजा का विधान है क्योंकि उन्होंने नरकासुर नामक राक्षस का वध किया था। कार्तिक अमावस्या के दिन पूरे देश में दीपावली बड़े धूमधाम से मनाई जाती है।प्रदोष काल में लक्ष्मी व गणेश के साथ विद्या व बुद्धि की अधिष्ठात्री देवी सरस्वती की भी पूजा की जाती है।इस दिन व्यापारी वर्ग अपने बहीखाते बदलते हैं। शिक्षा एवं लेखन व्यवसाय से जुड़े लोग ज्ञानवर्धन की कामना से कलम-दवात की पूजा-अर्चना करते हैं। तिजोरी, संदूक आदि को स्वास्तिक के चिन्हों से अलंकृत किया जाता है।
कृष्णपक्ष अन्धकार का प्रतीक है और शुक्लपक्ष प्रकाश का। इन दो पक्षों की संक्रान्तियों में गतिशील दीपावली का महा पर्व अन्धकार से प्रकाश की ओर‚अकाल से सुकाल की ओर‚ मृत्यु से जीवन की ओर तथा निर्धनता से भौतिक समृद्धि की ओर अग्रसर होने का एक वार्षिक अभियान है।

भारत जैसे कृषिप्रधान और संस्कृति प्रधान देश में लक्ष्मी की अवधारणा के अधिभौतिक‚आध्यात्मिक और आधिदैविक अनेक रूप हैं।लक्ष्मी का आधिभौतिक रूप धन-सम्पत्ति रुपया-पैसा, सोना-चांदी आदि भौतिक सम्पत्ति से जुड़ा है, आध्यात्मिक रूप उच्च चरित्र और मानवतावादी मूल्यों को अभिव्यक्त करता है और आधिदैविक धरातल पर लक्ष्मी कमलासना और विष्णु प्रिया के रूप में आराध्य मानी जाती है। इन तीन रूपों के अतिरिक्त यह देवी पुण्यात्माओं के घर में लक्ष्मी रूप से‚दुर्जनों के पास अलक्ष्मी रूप से‚ बुद्धिजीवियों के हृदय में सरस्वती रूप से,सज्जनों के पास श्रद्धा रूप से तथा कुलीन लोगों के घर में लज्जा भाव से विराजमान रहती है।सभी मित्रों को धनतेरस और दीपावली की हार्दिक शुभकामनाएं !!

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