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सतुआ खाएं पलथी मार !

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-ध्रुव गुप्त

आज भोजपुरिया लोगों के लोकपर्व सतुआन का दिन है। इसे लोग सतुआ संक्रांति, बिसुआ या टटका बासी भी कहते हैँ ! य ह लोकपर्व आम के पेड़ों पर लगे नए-नए फल और खेतों में चने एवं जौ की नई-नई फसल के स्वागत का उत्सव है। इस दिन लोग इन नई फसलों के लिए ईश्वर का आभार प्रकट करने के बाद नवान्न के रूप में आम के नए-नए टिकोरों की चटनी के साथ नए चने और जौ का सत्तू खाते है। सत्तू भोजपुरीभाषी लोगों का सर्वाधिक प्रिय भोजन है। इसे देशी फ़ास्ट फ़ूड भी कह सकते हैं। सत्तू चने का हो सकता है, जौ का हो सकता है, मकई का हो सकता है और इन सबके मिश्रण का भी। सत्तू को नमक और पानी के साथ सानकर खाया भी जा सकता है और घोलकर पिया भी जा सकता है। सत्तू खाने का असली मज़ा तब है जब उसे उसके कुछ संगी-साथियों के संग खाया जाय। एक कहावत है – सतुआ के चार यार / चोखा, चटनी, प्याज, अचार। और यह भी – आम के चटनी, प्याज, अचार / सतुआ खाईं पलथी मार। चटनी अगर मौसम के नए टिकोरे की हो तो सत्तू के स्वाद में चार चांद लग जाते हैं।मित्रों को लोकपर्व सतुआन की बहुत-बहुत बधाई !

(लेखक वरिष्ठ साहित्यकार हैं)

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