UXDE dot Net

कभी आपकी भी हुई है खटिया खड़ी?

By -

-इंजी.एस.डी.ओझा

शिक्षक ने बच्चों से कहा – मान लो तुम्हारे जेब में तीन पाई है . एक और पाई आ जाए तो कितने हों जायेंगे ?
सोनू ने तुरंत कहा – लेकिन , गुरू जी ! चारपाई जेब में आयेगी कैसे ? यह तब की बात है ,जब रुपया ,आना ,पैसा व पाई हुआ करते थे . अब केवल रुपया हीं बचा है . आना ,पैसा ,पाई तो गुजरे जमाने की बात हो गई है . शुक्र है कि चारपाई का अस्तित्व आज भी बचा है. चारपाई को खाट , खटिया भी कहते हैं .

खाट को जाट के सिर पर देख कर किसी ने कह दिया – जाट रे जाट , तेरे सिर पर खाट . तब से यह मुहावरा चलन में आ गया . जाट ने बुरा मानकर उस शख्स की कुटाई कर दी . लोगों ने कहा – जाट ने उसकी खटिया खड़ी कर दी . खटिया खड़ी करना भी मुहावरा बन गया . खटिया का इस्तेमाल मुख्यत: रात को सोने में इस्तेमाल होता है . दिन में बैठने के लिए या कुछ देर की झपकी के लिए इसका इस्तेमाल किया जा सकता है .ज्यादातर दिन में इस पर अन्न सुखाया जाता है.

जो लोग बुजुर्ग , बेबस व लाचार हैं , रोगी हैं . वे खटिया पर दिन हों या रात पड़े रहते हैं . ऐसे लोग सहानुभूति के पात्र होते हैं. जब ये वुजुर्ग खटिया पर पड़े पड़े हुकुमत चलाने लगते हैं , घर के मामलों में अनावश्यक दखल देने लगते हैं; उन्हें खटिया का खूसट बुड्ढा कहा जाने लगता है . जो लोग कुछ नहीं करते ,केवल खाते हैं , सोते हैं ; उन्हें खटिया तोड़ने वाला कहते हैं . ऐसे अकर्मण्य लोग खाते हैं और सोते हैं. ऐसे लोग तब होते थे , जब एक कमाता था ,दस खाते थे . अब खटिया तोड़ने वाले प्राणी कम होते जा रहे हैं , कारण , अब कमाने व खाने वालों का कंसेप्ट बदल गया है . अब दस सदस्य परिवार के हैं तो सबको कमाना होगा .

जो खाट बांस की होती है , उसे मूंज या नारियल की रस्सी से बुना जाता है . इस तरह की खटिया को बंसखट कहते हैं . जो खाट लकड़ी की होती है , उसे पटिहाट कहते हैं . पटिहाट की बुनाई व ओरिचन की खिंचाई से खाट की मजबूती का पता चलता है . पटिहाट से नई बहू के मजबूती का भी आकलन होता है. यदि बहू आंगन से पटिहाट को उठाकर घर में दाखिल कर देती तो यह माना जाता कि बहू की परवरिश उसके मायके में अच्छी हुई है . बहू के मायके वालों ने थोक में उसे घी दूध खिलाया पिलाया है . पहले दहेज में पटिहाट हीं दी जाती थी . इस पटिहाट की सुतलियां रंग विरंगी होती थीं.

पटिहाट या खाट की बुनायी करने वालों की काफी आवभगत होती थी . बुनायी करने वाले चौकन्ने रहते कि खाट की पाटी का अंतिम बंधन इंद्र चंद्र पर हीं खत्म हो . इसके लिए वे बकायदा इंद्र चंद्र यमराज के नाम से बंधन की गिनती किया करते . ऐसी मान्यता है कि यमराज के नाम से खत्म होने वाला बंधन मृत्यु का मार्ग जल्दी प्रशस्त करता है , जबकि सच्चाई कुछ और है .मौत का एक दिन निश्चित होता है , उसे कोई इंद्र चंद्र नहीं टाल सकते .

स्वर्ण जनित सिंहासन पर बैठो या झिलंगिया खटिया पर,
भाई साहब ! सबकी अर्थी , बस कंधों पर हीं जानी है .

आज खटिया की जगह पलंग ने हथिया लिया है . दहेज में खटिया देना कालातीत की बात हो गयी है . अब देहात में भी लोग खटिया की जगह चौकी पर सोने लगे हैं . इस बात को दृष्टिगत रखते हुए कुरूक्षेत्र विश्व विद्यालय ने एक खटिया का डिजाइन करवाया है , जिसमें बुनावट से लिखा है – welcome at Dhrohar Kurukshetra University . यह हरियाणा के संग्रहालय में रख दिया गया है ताकि आने वाली पीढ़ियों को बतलाया जा सके कि खटिया कैसी होती थी !!
(फेसबुक वॉल से साभार)

आप के शब्द

You can find Munmun Prasad Srivastava on , and .

1 Comment to कभी आपकी भी हुई है खटिया खड़ी?

Leave a Reply