-मुनमुन प्रसाद श्रीवास्तव
नालंदा से राजगीर की तरफ जाने के रास्ते में पड़ता है-सिलाव!
सिलाव दुनिया भर में बिहार की ख़ास मिठाई “खाजा” के लिए प्रसिद्ध है। यहाँ मुख्य मार्ग के दोनों और खाजा की दर्जनों दुकानें हैं। परम्परागत रूप से यह मिठाई बिहार में होने वाली शादियों में बनती आयी है। शादी के बाद विदाई के समय दुल्हन को बांस की खपच्चियों से बनी टोकरी, जिसे झांपी कहते हैं में भरकर कई-कई झान्पियाँ उसकी ससुराल भेजी जाती है। ससुराल पक्ष के लोग दुल्हन घर लाने के बादआस-पड़ोस और गली-मोहल्ले में कई कई दिनों तक खाजा बांटते हैं।
खाजा का शाब्दिक अर्थ है खा और जा।
राजगीर से वापसी के समय अधिकतर मुसाफिर सिलाव में रुक कर खाजा खाते हैं और पैक करवा कर ले भी जाते हैं। यहाँ एक खाजा दूकान के संचालक रंजीत सिंह बताते हैं की खाजा बिहार की सबसे पुरानी मिठाई है, हम अपने बुजुर्गों से सुनते आये हैं की रसगुल्ले से भी ज़्यादा पुराना है खाजा।
उनकी बात की पुष्टि सैकड़ों वर्ष पूरानी इस कहावत, “अंधेर नगरी चौपट राजा, टके सेर भाजी, टके सेर खाजा।” से होती है।
दरअसल खाजा की सबसे बड़ी खासियत है कि यह बनने के कई हफ्ते तक ताज़ा रहता है। सिलाव जैसा स्वाद कहीं और के खाजे में नहीं मिलता। आलम यह है कि राजगीर घूमने आने वाले विदेशी सैलानी भी यहाँ का खाजा अपने साथ ले जाते हैं।
सिलाव में खाजा की कीमत 80-90 रुपए है। वजन में बेहद हल्का होने के कारण एक किलों में बहुत सारा खाजा चढ़ता है। तो, अगर आप भी राजगीर आयें तो सिलाव का खाजा खाना बिलकुल न भूलें!!
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)
–
Leave a Reply
You must be logged in to post a comment.