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28 साल बाद बना है मकर संक्रांति पर यह दुर्लभ संयोग: आप भी लाभ उठाएं

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– -डा.मोहन चन्द तिवारी

पंचांग गणना के अनुसार इस बार 14 जनवरी दोपहर 1.55 से सूर्य धनु राशि से मकर राशि में प्रवेश करेंगे।
ज्योतिषाचार्यों के अनुसार इस बार 28 साल के बाद मकर संक्रान्ति के दिन ऐसा दुर्लभ योग बन रहा है जब आश्लेषा नक्षत्र में मकर प्रवेश के साथ ही सर्वार्थ सिद्धि योग, अमृत सिद्धि योग व कर्क राशि में चंद्रमा के अलावा प्रीति तथा मानस योग भी रहेगा। एक खास संयोग यह भी है कि मकर संक्रान्ति इस बार माघ मास में हो रही है जो कि अधिकतर पौष मास में ही पड़ती थी। इन ज्योतिषीय नक्षत्रों का शुभयोग सभी 12 राशियों के धारकों के लिए विशेष फलदायी माना जाता है।

भारत में पर्वों का निर्धारण चंद्रकलाओं द्वारा निर्धारित काल गणना एवं तिथिक्रम के अनुसार किया जाता है। खगोलीय दृष्टि से सूर्य का धनु राशि से मकर राशि में संक्रमण ‘मकर संक्रान्ति’ कहलाता है। भारतीय कालगणना के अनुसार प्रत्येक वर्ष में छह-छह महीनों के दो अयन होते हैं। सूर्य जब विषुवत रेखा के उत्तर मार्ग की ओर गतिशील रहता है तो उत्तरायण कहलाता है और दक्षिण मार्ग दक्षिणायन के नाम से प्रसिद्ध है। मकर संक्रान्ति के दिन से सूर्य दक्षिणायन से उत्तरायण में भी प्रवेश करते हैं। शास्त्रों में उत्तरायण को देवताओं का दिन और दक्षिणायन को देवताओं की रात्रि कहा गया है।

इस प्रकार मकर संक्रान्ति का पर्व रात्रि से प्रभातकाल की ओर तथा अन्धकार से प्रकाश की ओर जाने का पर्व है। इस दिन प्रभातकालीन सूर्य को साक्षी मानकर नदियों में स्नान करने का विशेष माहात्म्य है। मकर संक्रान्ति के दिन तीर्थराज प्रयाग और गंगा सागर आदि तीर्थ स्थानों में स्नान करने दूर दूर से तीर्थयात्री आते हैं। इस अवसर पर स्नान‚ दान‚ जप‚ तप‚ श्राद्ध तथा तर्पण आदि धार्मिक अनुष्ठानों का भी विशेष महत्त्व है। शीतकालीन ऋतु होने के कारण इस अवसर पर तिल-दान तथा वस्त्र-दान अत्यन्त पुण्यकारी माना गया है।

मकरसंक्रान्ति सूर्यवंशी आर्यों का पर्व
भारत मूलतः सूर्योपासकों का देश होने के कारण मकर संक्रान्ति सूर्यवंशी वैदिक आर्यों का राष्ट्रीय पर्व है। हमें अपने देश के उन आंचलिक पर्वों और त्योहारों का विशेष रूप से आभारी होना चाहिए जिनके कारण भारतीय सभ्यता और संस्कृति की ऐतिहासिक पहचान आज भी सुरक्षित है। उत्तराखण्ड का उत्तरायणी पर्व हो या बिहार का छठ पर्व केरल का ओणम पर्व हो या फिर कर्नाटक की रथसप्तमी सभी त्योहार इस तथ्य को सूचित करते हैं कि भारत मूलतः सूर्योपासक वैदिक आर्यों का देश होने के कारण बारह महीनों के तीज-त्योहार यहां सूर्य के संवत्सर चक्र के अनुसार मनाए जाते हैं।

मकरसंक्रान्ति से जुड़ी मान्यताएं

इस पर्व के साथ भारतीय सभ्यता एवं संस्कृति के अनेकमहात्म्य भी जुड़े हैं। ऐसी मान्यता है कि मकर संक्रान्ति के दिन भगवान् भास्कर अपने पुत्र शनि से मिलने स्वयं उसके घर जाते हैं। चूँकि शनिदेव मकर राशि के स्वामी हैं‚ अतः इस दिन को मकर संक्रान्ति के नाम से जाना जाता है। महाभारत काल में भीष्म पितामह ने अपनी देह त्यागने के लिये उत्तरायण पक्ष में पड़ने वाले मकर संक्रान्ति के दिन का ही चयन किया था। मकर संक्रान्ति के दिन ही गंगाजी भगीरथ के पीछे-पीछे चलकर कपिल मुनि के आश्रम से होती हुई सागर में जाकर मिली थीं। मान्यता यह भी है कि इस दिन यशोदा ने श्रीकृष्ण को प्राप्त करने के लिये व्रत किया था।

भारतराष्ट्र की अस्मिता का पर्व

दरअसल‚ भारतराष्ट्र की अवधारणा सूर्य के संवत्सर चक्र से जुड़ी एक ऋतु वैज्ञानिक मान्यता है। वैदिक साहित्य में प्रजावर्ग का भरण-पोषण करने के कारण सूर्य को वेदों में ‘भरत’ कहा गया है। उत्तरायण तथा दक्षिणायन मार्गों से भ्रमण करने के कारण सूर्य को विष्णु के रूप में चक्रवर्ती सम्राट् माना गया है। यही कारण है कि यजुर्वेद में सूर्य को ‘राष्ट्र’ भी कहा गया है तथा ‘राष्ट्रपति’ भी। सूर्य की भरत संज्ञा होने के कारण इस देश के सूर्योपासक लोगों का देश ‘भारतवर्ष’ कहलाया। इसलिए मकर संक्रान्ति का पर्व भारतवासियों के लिए ‘भारतराष्ट्र’ की पहचान एवं राष्ट्रीय अस्मिता से जुडा पर्व है।

विभिन्न प्रान्तों में मकरसंक्रान्ति के रूप
भारत के विभिन्न प्रान्तों में मकर संक्रान्ति का पर्व विविध रूपों में मनाया जाता है। हरियाणा और पंजाब में इसे लोहड़ी के रूप में एक दिन पूर्व ही मनाया जाता है। इस दिन अँधेरा होते ही आग जलाकर अग्निदेव की पूजा करते हुए तिल‚ गुड़‚ चावल और भुने हुए मक्के की आहुति दी जाती है। उत्तर प्रदेश में इसे ‘खिचड़ी’त्योहार कहते हैं तथा इस दिन खिचड़ी का दान और सेवन अत्यन्त पुण्यकारी माना जाता है। राजस्थान में इस दिन सौभाग्यवती स्त्रियां तिल के लड्डू‚ घेवर आदि वस्तुओं पर रुपया रखकर अपनी सास को प्रणाम करते हुए उनसे आशीर्वाद लेती है। साथ ही महिलाएँ किसी भी सौभाग्यसूचक वस्तु का चौदह की संख्या में पूजन एवं संकल्प कर चौदह ब्राह्मणों को दान देती हैं। महाराष्ट्र में इस दिन सभी विवाहित महिलाएँ अपनी पहली संक्रान्ति पर कपास‚ तेल व नमक आदि चीजें अन्य सुहागिन महिलाओं को दान करती हैं। तिल- गुड़ नामक हलवे के बाँटने की प्रथा भी है। लोग एक दूसरे को तिल-गुड़ देते हैं और देते समय बोलते हैं – ‘तिल गूड़ ध्या आणि गोड गोड बोला’ अर्थात् ‘तिल गुड़ लो और मीठा मीठा बोलो।’

उत्तराखण्ड के लोग मकर संक्रान्ति को ‘उत्तरायणी’ या ‘घुघुती’ त्योहार के रूप में मनाते हैं और काले कौए को घुघुते, खजूर के पकवान खाने के लिए बुलाया जाता है। इस दिन बागेश्वर में बड़ा मेला भी लगता है। बंगाल में इस पर्व पर स्नान के पश्चात तिल दान करने की प्रथा है। मकर संक्रान्ति के दिन ही गंगा जी भगीरथ के पीछे-पीछे चलकर कपिल मुनि के आश्रम से होकर सागर में जा मिली थीं। इसलिए यहाँ गंगासागर में प्रति वर्ष विशाल मेला लगता है। असम में यह पर्व ‘माघ-बिहु’ अथवा ‘भोगाली-बिहु’ के नाम से मनाया जाता है।

तमिलनाडु में मकर संक्रान्ति का पर्व ‘पोंगल के रूप में चार दिनों तक मनाने की परम्परा है। प्रथम दिन भोगी-पोंगल‚ द्वितीय दिन सूर्य-पोंगल‚ तृतीय दिन मट्टू-पोंगल अथवा केनू-पोंगल और चौथे व अन्तिम दिन कन्या-पोंगल। इस प्रकार पहले दिन कूड़ा करकट इकठ्ठा कर जलाया जाता है‚ दूसरे दिन लक्ष्मी जी की पूजा की जाती है और तीसरे दिन पशुधन की पूजा होती है। पोंगल मनाने के लिये स्नान करके खुले आँगन में मिट्टी के बर्तन में खीर बनायी जाती है‚ जिसे पोंगल कहते हैं। इसके बाद सूर्य देव को नैवैद्य चढ़ाया जाता है। उसके बाद सभी लोग खीर को प्रसाद के रूप में ग्रहण करते हैं।

मकरसंक्रान्ति : वृष्टिविज्ञान का पर्व
सूर्य संक्रान्ति के इस पर्व के साथ धार्मिक तथा सामाजिक मान्यताओं के अतिरिक्त भारतीय काल गणना‚ नक्षत्रविज्ञान‚ वृष्टिविज्ञान एवं ऋतुविज्ञान के भी गूढ़ सिद्धान्तभी जुड़े हुए हैं। यह भारतवंशी सूर्योपासक आर्यों का ही वैज्ञानिक आविष्कार है जिसके अनुसार मकर संक्रान्ति के दिन से ही आगामी साढ़े छह महीनों तक मेघ सूर्य के वाष्पीकरण की प्रक्रिया से ‘वृष्टिगर्भ को धारण करते हैं तथा वर्षा ऋतु में मानसूनी वर्षा इसी सफल ‘वृष्टिगर्भ का परिणाम है। प्राचीन भारतीय वैज्ञानिक वराहमिहिर का वृष्टिगर्भ सिद्धान्त इन्हीं उत्तरायण तथा दाक्षिणायन पक्षों पर आधारित है। कृषि-प्रधान भारतवासियों के लिए ठीक समय पर मानसूनों की वर्षा उनके जीविकोपार्जन का मुख्य आधार होता है और ऋतु वैज्ञानिक दृष्टि से यह प्रक्रिया सूर्य के द्वारा जल में प्रवेश करने से सम्पन होती है। पर्यावरण विज्ञान की दृष्टि से मकर राशि के स्वामी शनि को सूर्य का पुत्र जल माना गया है। मकर राशि में सूर्य का प्रवेश होने का तात्पर्य है वाष्पीकरण की सतत प्रक्रिया द्वारा मानसूनों का निर्माण होना जिसे भारतीय वैज्ञानिक ‘वृष्टिगर्भ’कहते हैं। मकर संक्रान्ति की प्रभात वेला में भारत वर्ष का कृषक वर्ग इसी वृष्टिकारक सूर्य को प्रणाम करते हुए कामना करता है– ‘निकामे निकामे वर्षन्तु मेघाः’ अर्थात् सूर्यदेव समय समय पर कृषि के अनुकूल वर्षा करें ताकि भारतवंशी आर्यों का यह देश अन्न-धन और सुख-समृद्धि से सम्पन्न हो सके। समस्त देशवासियों को मकर संक्रान्ति, उत्तरायणी, लोहड़ी, और पोंगल की शुभकामना।

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