UXDE dot Net

वसंत पंचमी : सरस्वती और कामदेव की उपासना का पर्व

By -

-डा.मोहन चन्द तिवारी

‘रतिकामौ तु सम्पूज्य कर्त्तव्यः सुमहोत्सवः’
इस वर्ष 1फर्वरी, 2017 को वसंत पंचमी का पर्व मनाया जा रहा है। इस दिन सरस्वती के समुपासक और समस्त शिक्षण संस्थाएं नृत्य संगीत का विशेष आयोजन करते हुए विद्या की अधिष्ठात्री देवी की पूजा अर्चना करती हैं। सरस्वती ज्ञान विज्ञान की अधिष्ठात्री देवी ही नहीं बल्कि ‘भारतराष्ट्र’ को पहचान देने वाली देवी भी है। सरस्वती देवी की उपासना केवल भारत में ही नहीं विश्व के अन्य देशों में भी प्रचलित है। बर्मा में सरस्वती देवी को ‘थुराथाडी’, चीन में ‘बियानचाइत्यान’, थाईलैण्ड में ‘सुरसवदी’ जापान में तथा ‘बेंजाइतेन’, कहते हैं। जापान में सरस्वती ज्ञान, संगीत तथा ‘प्रवाहित होने वाली’ वस्तुओं की देवी के रूप में पूजित है तथा उनका चित्रण हाथ में एक संगीत वाद्य लिए हुए किया जाता है।

इस पर्व के साथ कामदेव की उपासना का इतिहास भी जुड़ा है कामभाव को उद्दीप्त करने वाली वेलेंटाइन ऋतु वसन्त प्रतिवर्ष अपने प्रेमियों को निःशुल्क रूप से रंग बिरंगे फूलों की सौगात प्रदान करती आई है। वह पुष्पगुच्छों से शोभायमान नवयौवना प्रकृति देवी के रूप में अपने चाहने वालों को पुष्पासव का मधुपान कराती है। इसीलिए वसन्त को मधुमास भी कहा गया है। इस मधुमास में मौसम सुहाना रहता है। चारों ओर सुंदर प्राकृतिक दृश्य, सुगंधित पुष्प, मंद-मंद पवन, फलों के वृक्षों पर बौर की सुगंध, जल से भरे सरोवर, आम के वृक्षों पर कोयल की कूक ये सब रति भाव को उत्तेजित कर देते हैं। यह ऋतु कामदेव की ऋतु है। मान्यता है कि कामदेव इस दिन से मौसम को मादकता से भर देते हैं। इन कारणों से कामोद्दीपक ऋतु होने के कारण शास्त्रों में वसन्त पंचमी के दिन रति और कामदेव की पूजा करके मदनोत्सव मनाने का विधान आया है-

‘रतिकामौ तु सम्पूज्य कर्त्तव्यः सुमहोत्सवः’।

वसन्त ऋतु में सूर्य विषुवत रेखा पर सीधे चमकता है इसलिए इस ऋतु में न अधिक गर्मी होती है और न अधिक सर्दी। कालिदास ने इस सुहाने वसन्त के सायंकाल को सुखद और दिन को रमणीय बताया है- ‘सुखा प्रदोषाः दिवसाश्च रम्याः’। प्रकृति के धरातल पर किंशुक पुष्प का खिलना और कोयल की कूज को वसन्तागम का सूचक माना गया है। पशु, पक्षी, मनुष्य आदि सभी प्राणी इस ऋतु में कामबाण के लक्ष्य होते हैं। वसन्तोसव के अवसर पर प्रेम अथवा अनुराग के प्रतीक लाल पुष्पों को भेंट कर प्रणय निवेदन की परम्परा सर्वप्रथम भारत में ही प्रचलित हुई है। कालिदास के नाटक ‘मालविकाग्निमित्र’ में रानी इरावती वसन्त ऋतु के अवसर पर अपना प्रेमाभिलाष प्रकट करने के लिए राजा अग्निमित्र के पास लाल कुरबक के नवीन पुष्पों को भिजवाती है। प्राचीन भारत में वसन्तोत्सव के अवसर पर स्त्रियों का अपने पति के साथ झूला झूलने की प्रथा भी प्रणय निवेदन की परम्परा थी। वसन्तोत्सव के अन्तर्गत प्रेम नाटकों का भी सामूहिक प्रदर्शन किया जाता था। ‘मालविकाग्निमित्रम्’, ‘रत्नावली’, ‘पारिजातमंजरी’ आदि नाट्य रचनाएं वसन्तोत्सव से जुड़ी लोकप्रिय रचनाएं हैं। ‘अभिज्ञानशाकुन्तल’ नाटक में भी वसन्तोत्सव की विशेष चर्चा आई है।

पश्चिमी जगत में ‘वेलेंटाइन डे’ जैसी प्रेम सम्बन्धी मान्यताएं भारत से ही निर्यात हुई हैं। वसन्त ऋतु के अवसर पर ‘वेलेंटाइन डे’ का मनाया जाना इसी तथ्य का सूचक है। परन्तु प्रकृति प्रेमियों, साहित्यकारों और कलाकारों को ऋतुराज वसन्त के आगमन का जिस हर्षोल्लास के साथ स्वागत करना चाहिए उसकी परम्परा अब धीरे-धीरे लुप्त होती जा रही है। विडम्बना यह है कि पश्चिमी बाजारवाद की दौड़ में भारत नामक यह देश अपनी प्रियतमा उस वेलेंटाइन ऋतु वसन्त को भुलाता जा रहा है जिस को घृत मानकर कभी वैदिक ऋषियों ने यज्ञ की आहुतियां डाली थी, जिस के आगमन पर भारतवंशियों ने कभी दिग्विजय यात्राओं का दौर प्रारम्भ किया था और जिसे संवत्सर पक्षी का वाहन बनाकर कभी भारतीय कालगणना की उड़ानें भरी गई थीं। सामान्यतया वसन्त ऋतु के मधुमास में ‘वेलेंटाइन डे’ का भी आगमन होने से आधुनिक पीढ़ी वसन्त पंचमी का उस उमंग से5 स्वागत नहीं करती है जितनी ऊर्जा और पैसा वह ‘वेलेंटाइन डे’ के मौके पर खर्च करती है। पिछले कुछ वर्षों से वसन्त का स्वागत चाकलेट डे, फ्रेंड्स डे, वेलेंटाइन डे, हग डे आदि के रूप में किया जाने लगा है। ऐसा लगता है कि हमने पश्चिम के उपभोक्तावादी बाजार में हजारों वर्षों से पाले पोसे अपने पीतांबरधारी वसन्त को गिरवी रखकर गुलाबी ‘वेलेंटाइन डे’ खरीद लिया है जिसके अनुसार हमें कुछ व्यापारिक प्रतिष्ठानों को मुनाफा कमाने के लिए गुलाबी वस्त्रों को पहनना होता है, ब्यूटी पार्लरों और होटलों में भीड़ जुटानी होती है और फिर लाल गुलाब भेंट करके बनावटी प्रेम का इजहार करना होता है।

चिन्ता इस ओर भी प्रकट की जानी चाहिए कि जिन शिक्षण संस्थानों में वसन्त पंचमी का स्वागत ज्ञान की अधिष्ठात्री देवी सरस्वती की आराधना से होना चाहिए वहां नई पीढी का युवावर्ग आज ‘वेलेंटाइन डे’ जैसी गतिविधियां माल संस्कृति से प्रेरित होकर प्रेम के एक भौंडे चरित्र को ही परोसने में लगा है जिसे भारतीय सभ्यता और संस्कृति का तिरस्कार ही माना जाना चाहिए।
वसन्त पंचमी की शुभकामना सहित
(फेसबुक वॉल से साभार)

आप के शब्द

You can find Munmun Prasad Srivastava on , and .

Leave a Reply