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नाम में क्या रखा है ?

By -

-इंजी.एस डी ओझा

एक सज्जन का नाम ठठपाल था. वे अपने नाम से दु:खी थे . उन्होंने नाम बदलने की सोची .वे अच्छे नाम की तलाश में निकल पड़े. एक खेत में एक औरत धान बीन रही थी . उन्होंने उसका नाम पूछा तो उत्तर मिला – लक्ष्मी. कमाल है नाम लक्ष्मी और काम धान बीनने का. एक हलवाहे का नाम उन्हें धनपाल पता चला . भला धनपाल को हल चलाने की क्या जरूरत ? हद तब हो गई जब उन्हें मरे हुए एक व्यक्ति का नाम अमर बताया गया . अब उन्हें अपना ठठपाल नाम अच्छा लगने लगा . उनके नाम से अनायास हीं कविता स्वत: हीं फूट पड़ी –

धनवा बीनत लछमिनियां के देखनी , हरवा जोतत धनपाल.
मुअल जात अमर के देखनी , भले बाड़े ठठपाल .

शेक्सपीयर का कहना है कि –

What’s in a name ? that which we call a rose.
By any other name would smell as sweet.
(अर्थात् नाम में क्या रखा है ? व्यक्ति की असली पहचान उसका व्यवहार होता है . जिस प्रकार से गुलाब को किसी भी नाम से पुकारा जाय वह सुगंध हीं देगा .)

शेक्सपीयर की इस बात से मैं इत्तेफॉक नहीं रखता . नाम में कुछ नहीं रखा तो लोग ऐसा क्यों कहते हैं कि यदि अमुक बात गलत सिद्ध हुई तो मेरा नाम बदल देना. नाम बदलकर घूरहू,कतवारु या चिरकुट रख देना . नाम में कुछ नहीं रखा है तो कोई अपना नाम संजय, दिनेश छोड़कर ऊल जलूल नाम क्यों रखने लगा ? वह भी एक अदना सी बात को सिद्ध करने के लिए . शेक्सपीयर की तुलना कालिदास से की जाती है . क्यों नहीं कालिदास की तुलना शेक्सपीयर से की जाती ? यह नाम की हीं तो महिमा है. फिल्मी दुनिया में एक बहुत बड़े गीतकार हैं गुलजार . वह भी गच्चा खा गये . लिख दिया कि नाम गुम जाएगा .नाम कैसे गुम जाएगा ? नाम तो अमर है. अरस्तू ,सुकरात , बुद्ध ,ईशा मसीह आदि के नाम तो अमर हैं . जब तक कायनात है तब तक उनका नाम अमर रहेगा . फिर शेक्सपीयर ने ऐसा क्यों कहा कि नाम में क्या रखा है और गुलजार साहब ने यह क्यों कहा कि नाम गुम जाएगा . नाम में बहुत कुछ रखा है , नाम कभी भी नहीं गुमेगा.

नाम को बदल कर बोलने की परम्परा अक्सर गांवों में पायी जाती है. हमारे गांव में एक हीं परिवार के तीन पीढ़ियों के नाम वास्तविक नाम से इतर रहे हैं . दादा का नाम झपसी , बेटे का नाम खरवार और पोते का नाम चेथरू है . इनका वास्तविक नाम नेपथ्य में चला गया है. एक परिवार अलग विलग हुआ तो नवजात का नाम अलगू रख दिया गया . एक परिवार में ढेर दिन बाद पुत्र हुआ तो उसका नाम लोर पोछन (आँसू पोछने वाला ) रखा गया , जिसे गांव के लोगों ने बिगाड़ कर बम्बईया रख दिया . एक गांव का चीका कबड्डी खेलने में माहिर था तो उसका नाम बाघ रख दिया गया . बुजुर्ग वासुदेव आज भी बाघ के नाम से हीं जाने जाते हैं. आज नाम रखने या नाम बदलने की वजह से ये लोग उपहास के पात्र बने हुए हैं और शेक्सपीयर कह गये कि नाम में क्या रखा है.

नाम में क्या रखा है तो कलकत्ता को कोलकाता ,मद्रास को चेन्नई , बाम्बे को मुम्बई , बनारस को वाराणसी व गुड़गांव को गुरूग्राम अब क्यों कहा जाने लगा है. गांव में कुछ लोगों के नाम दरोगा ,तहसीलदार , बैरिस्टर व वकील भी है . ये तो वही बात हुई कि आँख के अंधे नाम नयनसुख . नाम रखने की वजह से हम इनकी खिल्ली उड़ाते हैं और शेक्सपीयर कह गये कि नाम में क्या रखा है . अजामिल जैसे पापी के बेटे का नाम नारायण रखने से वह भव सागर तर गया . नाम नारायण नहीं होता तो अजामिल घोर नरक में होता. तो , नाम में बहुत कुछ रखा है. नाम की महिमा तो अपरमपार है.

सैफ करीना ने अपने बेटे का नाम तैमूर रखा तो पूरे भारत में भूचाल आ गया .अब बहुत कम लोग हीं कह रहे हैं कि नाम में क्या रखा है. नाम में बहुत कुछ है . आज हर मां बाप अपने बच्चे का नाम रखने से डरते हैं कि कहीं बच्चा बड़ा होकर यह न कहे कि मेरा नाम यह क्यों रखा ? सैफ करीना का बच्चा भी बड़ा होकर यह जरूर पूछेगा कि उसके लिए तैमूर नाम हीं दुनिया में शेष बचा था ? जालिम तैमूर का नाम जब तक दुनिया में चलता रहेगा तब तक दिल से हम इंतकाम लेते रहेंगे . सरदार अंजुम कहते हैं –

जब कभी तेरा नाम लेते हैं .
दिल से हम इंतकाम लेते हैं.
(फेसबुक वॉल से साभार)

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