लेखक – ध्रुव गुप्त
पता नहीं किस मिट्टी से बनी होती हैं ये बहनें भी ! इनका पूरा बचपन अपने भाईयों से लड़ते झगड़ते बीत जाता है। साथ रहें, साथ खाएं या साथ खेलें – एकदम दुश्मनों वाला सलूक ! भैया दूज या राखी के दिन मिठाई खिलाने के बाद भी नेग के लिए झगड़ा। फिर ये लड़ते-झगड़ते जाने कब सयानी हो जाती हैं और भाईयों की फ़िक्र करने लगती हैं। किसी चीज़ में हिस्सा मांगना तो दूर, अपना हिस्सा भी भाईयों को इत्मीनान से सौंप देती हैं। बड़े प्यार से राखी बांधती हैं, बजरी खिलाती हैं और बदले में कुछ मांगती भी नहीं। कुछ दो तो होंठों पर हल्की सी मुस्कान। न दो तब भी आंखों में प्यार। ससुराल जाकर भाईयों को अपनी प्रार्थना और प्रतीक्षा में शामिल कर लेती हैं। भैया दूज और राखी के दिन भाईयों का इंतज़ार करती हैं। यह जानते हुए भी कि भाईयों को अपने काम और परिवार से फुर्सत मिलने की संभावना कम ही होती है। भैया दूज भाई-बहन के इसी नैसर्गिक, आत्मीय रिश्ते की याद दिलाने वाला लोक-आस्था का खूबसूरत पर्व है। इस दिन भाई बहनों की ससुराल में उसका आतिथ्य स्वीकार करते हैं और बहनें भाईयों की लम्बी आयु की प्रार्थना करती हैं। जैसा कि हमारे यहां किसी भी रीति या रिश्ते को स्थायित्व दिलाने के लिए उसे धर्म से जोड़ने की परंपरा रही है, भैया दूज के लिए भी पुराणों ने एक कथा गढ़ी है। कथा के अनुसार सूर्य के पुत्र और मृत्यु के देवता यम या यमराज का अपनी बहन यमी या यमुना से अपार स्नेह था। ब्याह के बाद यमी अपने भाई से बराबर निवेदन करती कि वह किसी दिन उसके घर आकर उसका आतिथ्य स्वीकार करे। कार्य की व्यस्तता के कारण यमराज कभी बहन के लिए समय नहीं निकाल सके। अंततः कार्तिक शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को वे एक बार बहन के घर पहुंच ही गए। यमी ने दिल खोलकर भाई की सेवा की। प्रस्थान के समय बहन के सत्कार से प्रसन्न यम ने यमी से वरदान मांगने को कहा। यमी ने अपने लिए कुछ भी न मांगकर दुनिया की तमाम बहनों के लिए यह वरदान मांग लिया कि आज के दिन जो भाई अपनी बहन से मिले और यमुना के जल या बहन के घर में स्नान कर उसके हाथों से बना भोजन करे, उसे कभी भी यमलोक का मुंह नहीं देखना पड़े। यम और यमी के मिलन के इस दिन भैया दूज की परम्परा स्थापित हुई।
यम और यमी की यह पौराणिक कथा काल्पनिक हो सकती है, इसके पीछे छिपी भावनाएं काल्पनिक कतई नहीं है। इस कथा के पीछे हमारे पूर्वजों का उद्देश्य यह रहा होगा कि भाई भैया दूज के बहाने ही सही, साल में कम से कम एक बार अपनी पतीक्षारत बहन की ससुराल जाकर उससे जरूर मिलें। बरस भर बाद भाई-बहन मिलेंगे तो रिश्ते का नवीकरण होगा। बचपन की यादें ताज़ा होंगी। प्रेम भी बरसेगा, उलाहने भी। बिहार और पूर्वी उत्तर प्रदेश में इस दिन बहनें भाईयों को मिठाई के साथ ‘बजरी’ अर्थात कच्चे मटर या चने के दानें भी खिलाती हैं। ऐसा वे अपने भाईयों को बज्र की तरह मजबूत बनाने के उद्धेश्य से करती हैं। संध्या के समय वे यमराज के नाम से दीप जलाकर घर के बाहर रख देती हैं। उस समय आसमान में कोई चील उड़ता दिखाई दे तो माना जाता है कि भाई की लंबी उम्र के लिए बहन की दुआ कुबूल हो गई है।
सभी भाई-बहनों को भैया दूज की अशेष शुभकामनाएं !
ध्रुव गुप्त की फेसबुक वॉल से साभार
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