माटी का दीया
माटी का तेल
बाबूजी की पुरानी धोती
माई के हाथ बनाते
छोटी—छोटी बाती
जल उठा है दीया
पंक्तिबद्ध छत के छज्जे पर,
चौखट पर,संदूक पर,किताब की आलमारी पर
गाय के नाद पर,भ्ौंस के खूंटे पर
जल उठा है दीया
गोबर की मांद पर,धान की बेढ़ी पर,
उठ रही है गंध माटी की
तेल की बाती की
जल रहा है दीया
जल रही दिवाली
फ्लैशबैक से बाहर…
कहां है दीया कहां है बाती
कहां है दिवाली?
—रुपेश शुक्ल
दिल्ली विश्वविघालय
दिल्ली—110007
संपर्कः 9899914114
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