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और भी तरीके हैं दीपावली मनाने के पटाखों के सिवा..

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‘Say No To Crackers’ अभियानों के चलते आतिशबाजी के शोर में मामूली कमी तो जरूर आई है, मगर यह नाकाफी है। यही वजह है कि दीपावली के दिनों में श्वास के रोगियों को पटाखों से होने वाले वायु प्रदूषण से भारी परेशानी होती है। केवल बीमार ही नहीं, बल्कि पटाखों का धुआं और कान के पर्दें फाड़ देने वाले पटाखों से स्वस्थ आदमी भी दिक्कत महसूस करता है। ऐसे में सवाल यह उठता है कि क्या दीवाली बिना पटाखों के नहीं मनाई जा सकती? जायजा लिया आप के शब्द टीम नेः

भारत त्यौहारों का देश है यहां हर दिन कोई न कोई त्यौहार होता है, किंतु कार्तिक मास की अमावस्या की काली घनी अंधेरी रात में दीयों का त्यौहार दीपावली बड़े हर्ष और उल्लास के साथ मनाया जाता है। इस पर्व के साथ जनमानस में यह यह धार्मिक आस्था जुड़ी है कि लंकापति रावण को युद्ध में पराजित करने के बाद श्रीराम के आयोध्या लौटने की खुशी में नगरवासियों ने दीये जलाए थे, तब से दीवाली का त्यौहार मनाया जाने लगा। हालांकि, धीरे—धीरे अब इस त्यौहार पर दीयों का स्थान बिजली की लडि़यों ने लिया है और कानफोड़ू पटाखों का जोर ज्यादा दिखता है। वैसे, पिछले कुछ वर्षों से ट्टसे नो टु व्रेQकर्स’ अभियानों के चलते आतिशबाजी के शोर में मामूली कमी तो जरूर आई है, मगर यह नाकाफी है। यही वजह है कि दीपावली के दिनों में श्वास के रोगियों को पटाखों से होने वाले वायु प्रदूषण से भारी परेशानी होती है। केवल बीमार ही नहीं, बल्कि पटाखों का धुआं और कान के पर्दें फाड़ देने वाले पटाखों से स्वस्थ आदमी भी दिक्कत महसूस करता है। ऐसे में सवाल यह उठता है कि क्या दीवाली बिना पटाखों के नहीं मनाई जा सकती?

दिल्ली स्थित पटेल चेस्ट इंस्टीट्यूट के कार्यवाहक निदेशक प्रो.एस.एन.गौड़ कहते हैं कि पटाखों के इस्तेमाल से निकलने वाली जहरीली गैसें न केवल अस्थमा या श्वास के रोगियों को परेशान करती है,बल्कि इससे स्वस्थ लोगों के भी बीमार पड़ने की संभावना कई गुणा बढ़ जाती है। अस्पतालों में दीवाली के बाद श्वास की तकलीफों और एलर्जी की समस्या लेकर आने वाले मरीजों की तादाद काफी बढ़ जाती है। पटाखे चलाना पर्यावरण के अनुकूल भी नहीं है, क्योंकि वातावरण में खतरनाक गैसों का आवरण कई कई दिनों तक बना रहता है, जो हमारे साथ—साथ पशु—पक्षियों की सेहत पर भी प्रतिकूल प्रभाव डालता है।

गृहणी शेफाली यादव कहती हैं कि अच्छा हो कि इस त्यौहार को घरों में तेल या घी के दीये जलाकर मनाया जाए। दीयों से वातावरण तो आलोकित होता ही है, साथ ही मच्छरों और किटाणुओं का भी सफाया होता है। इसलिए, इस दीवाली हम सबको यह संकल्प लेना चाहिए कि हम पटाखों को ना कहेंगे और दीयों की लड़ी से घर—बाहर रौशन करेंगे। आइए अब हम आपको बता सकते हैं कि बिना पटाखों के भी आप अच्छी दीवाली कैसे मना सकते हैं

1 बच्चों का ध्यान पटाखों से हटाकर उनको घर की साफ—सफाई और साज—सज्जा की तरफ लगाइए।

2 परिवार में विशेषरूप से लड़कियों को रंगोली बनाने और वंदनवार लगाने आदि के काम करने के लिए प्रेरित करें। इससे उनमें रचनात्मक क्षमता का विकास होगा।

3 बच्चों के साथ किस्म—किस्म की मोमबत्तियों की खरीदारें करें, इससे लघु—कुटीर उघोगों के कारीगरों को फायदा होगा और उनकी दीवाली भी आपकी ही तरह रौशन होगी।

4 मोबाइल और इंटरनेट के चलते आजकल लोगों का एक—दूसरे से प्रत्यक्ष मेल—मिलाप बहुत कम हो गया है। दीवाली के दिन अपने घर में पूजा संपन्न करने के बाद आप बच्चों को साथ लेकर पड़ोसियों को खील—बताशे, फल—मिठाई आदि एक्सचेंज करने के लिए ले जाएं। इससे उनमें सामाजिकता की भावना का संचार होगा और वे अधिक सामाजिक बनेंगे।

5 रात को सब एक साथ मिलकर दीपमाला सजाएं। दीपों की यह रौशनी आपके अंतर्मन को भी रौशन करेगी।

6 शराब किसी भी त्यौहार की खुशियों पर पानी फेर देता है। इसलिए इस दीवाली खुद से संकल्प कीजिए कि आप शराब और अन्य नशीली वस्तुओं को हाथ भी नहीं लगाएंगे। हर तरफ प्रेम और उल्लास का संचार करेंगे।

दिल को खुश करने वाली दीवाली मनाएं
दीवाली खुशियां मनाने,दीप जलाने और अपने अंदर और बाहर के अंधकार को दूर करने का पावन त्यौहार है। कुछ लोग दीवाली की रात जमकर जुआ भी खेलते हैं। इसमें अक्सर वे अपनी गाढ़ी कमाई भी लुटा देते हैं। नतीजा यह होता है कि त्यौहार की चमक तो कम होती ही है, साथ ही परिवार पर भी मुसीबतों का पहाड़ टूट पड़ता है। इसलिए लक्ष्मी जी के नाम पर दीपावली के दिन जुआ खेलना एक गलत परंपरा है। हमें इस रात अच्छी परंपराओं का सूत्रपात करते हुए दीए जलाने चाहिए,मिठाई बांटनी चाहिए और पटाखों से तो बिल्कुल परहेज करना चाहिए। तो, इस दीवाली आप भी मेरे साथ संकल्प लीजिए कि दिल को खुश करने वाली दीवाली मनाएंगे, किसी को दुखी बिल्कुल नहीं करेंगे। क्योंकि खुशियों के दीयों का नाम ही है दीवाली।

भावना गौतम

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