नशे—विशेषकर धूम्रपान के जाल में युवा ही नहीं, टीन एजर भी तेजी से फंसते जा रहे हैं। एसे में भावी पीढी को नशे के खतरों से बचाना बड़ी चुनौती बन गई है। आखिर टीनएजर्स एवं यूथ में क्यों बढ़ रही है नशे की लत और इससे उनको बचाने के लिए क्या तरीके अपनाए जाएं? इस मदर्स डे(8 मई) को मौलाना आजाद मेडिकल कॉलेज एवं संबंधित अस्पताल के पूर्व चिकित्सक छात्रों की सामाजिक संस्था कल्पवृक्ष’ राजधानी दिल्ली के जनकरपुरी दिल्ली हाट में एक धूम्रपान निषेध अभियान चला रही है। इसी को ध्यान में रखते हुए कल्पवृक्ष’ के अध्यक्ष डॉ.नितिन शाक्या से इस ज्वलंत विषय पर बात की वरष्ठि पत्रकार मुनमुन प्रसाद श्रीवास्तव ने। प्रस्तुत हैं उसके प्रमुख अंशः
नशे की लत के लिए क्या बदलती जीवन शैली जिम्मेदार है?
दरअसल, नशे के आगोश में जाकर लोग अपने मन की कमजोरियों पर काबू पाने की कोशिश करते हैं। सच तो यह है कि आज जिस तरह का लाइफ स्टाइल हो गया है, उसमें हम उम्मीदें ज्यादा पालने लगे हैं। जब वे उम्मीदें पूरी नहीं हो पातीं, तो अपने अंदर की कमजोरी पर काबू पाने के लिए नशे का सहारा लेते हैं। वैसे, नशे की आदत सिर्फ इस वजह से ही नहीं लगती। एलीट क्लास में तो यह फैशन है जिसका असर निम्न मध्यमवर्गीय परिवारों के यूथ पर भी पड़ रहा है। वैसे, नशा छोड़ने के लिए आत्मबल पैदा करना पड़ता है। और योग की इसमें बड़ी भूमिका हो सकती है। योग बच्चों को शारीरिक व मानसिक दोनों स्तरों पर मजबूत बनाता है।
नशे के खतरे को फिर तो स्कूल स्तर पर सिलेबस में भी पढाना लाजिमी हो गया है?
अपने बच्चों को नशे—विशेषकर धूम्रपान की लत से बचाने का आज जो संकट हमारे सामने आया है, उसकी सबसे बड़ी वजह है। नष्ट होते संस्कार और जीवन मूल्य। पहले संयुक्त परिवारों में बच्चे को कोई भी सिगरेट वगैरह पीते देखता था, तो उसको समझा कर सही रास्ते पर ले आता था। आज एकल परिवार हैं, जहां माता—पिता दोनों ही अपने करियर में इतने बिजी हैं कि बच्चा क्या कर रहा है उनको नहीं मालूम। ऐसी लापरवाही ही बच्चे को गलत रास्ते पर जाने की वजह बनती है। वैसे, परिवार में उपेक्षित महसूस करने पर भी बच्चे अपने तनाव को दूर करने के लिए नशे की लत में पड़ जाते हैं। इसीलिए पेरेंट्स को बच्चों के मन को समझना पड़ेगा। बच्चों को उपदेश अच्छे नहीं लगते इसलिए व्यवहारिक दृष्टिकोण से ही उनको समझाना होगा। अब समय आ गया है कि स्कूल स्तर पर सिलेबस में भी भी नशे के प्रति खतरों से आगाह करने वाले पाठ्यक्रम रखे जाएं। क्योंकि इलाज से बेहतर होता है बचाव।
यदि पेरेंट्स बच्चों के साथ बिताएं, तो वे भटकाव के रास्ते पर जाने से बच सकते हैं?
सच तो यहै कि फैशन इंडस्ट्री से जुड़े लोग आज यूथ का आइकॉन बन गए हैं। वहां नशा करना कोई नई बात नहीं है। आज की युवा पीढी यह सोचती है कि जब वे ऐसा करते हैं,तो हम क्यों नहीं! मगर ड्रग्स का जाल ऐसा है कि जिसने भी एक बार इसको ट्राई किया वह इसके चंगुल में फिर हमेशा के लिए फंस कर रह जाता है। वैसे भी, नशे के सौदागरों को कैप्टिव ऑडिएंस चाहिए। यानी एक फसा वह दूसरे को फंसाए। दूसरी तरफ आज बच्चों पर मॉडर्न लाइफ का स्ट्रेस बहुत है। पेरेंट्स भी बच्चों को तनाव देते हैं। इसलिए मैं समझता हूं कि पेंरेट्स को किसी भी तरह के खतरे से बच्चों को बचाने के लिए उनको ज्यादा से ज्यादा वक्त देना होगा। उनके स्ट्रेस को समझना होगा। यदि खुद में कोई बुरी आदत है, तो पहले उसको बदल कर फिर बच्चे को बदलने की कोशिश करनी होगी। बच्चे देख कर सीखते हैं।
क्या नैतिक शिक्षा से बच्चों को नशे की लत से दूर रख्ने में आसानी हो सकती है?
नशे की लत जहां उच्च वर्ग में फैशन के रूप में है, तो वहीं निम्न वर्ग में आर्थिक विषमताओं के चलते आई कुंठाओं की वजह से है। नशे के व्यापारियों के लिए दोनों ही टारगेट हैं। लेकिन नशा करने वाला यह बात भूल जाता है कि नशे की जिस बीमारी को वह पाल रहा है, वह उसे खत्म करके ही पीछा छोड़ेगी। यानी जिस शांति’ की कामना में ड्रग्स की तरफ युवा कदम बढ़ाते हैं वह रास्ता उनको बर्बादी के कगार पर ही ले जाता है। इसलिए यह जरूरी है कि बच्चों को इससे बचाने के लिए सुरक्षात्मक उपाए अपनाएं जाएं। इसमें सबसे पहली चीज है उनको नैतिक मूल्यों की शिक्षा देना। जहां नैतिक मूल्यों में गिरावट आती है, वहां इस तरह की बुराईयां जन्म लेती ही है। चाहे घर हो, स्कूल या फिर कॉलेज कहीं भी तो छात्रों को आज नैतिकता का पाठ नहीं पढाया जाता। ऐसे में उनको जो सही लगता है, वे करते हैं। और खुद को सही समझने की यही भूल उनको नशे की राह पर ले जाती है।
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