-किरण लता
पति से कड़वाहट भरे रिश्ते को ढोते हुए सपना जब बुरी तरह थक गई तो उसने एक ऐसा कदम उठाया जिससे वह अनसुलझे रिश्तों के ऐसे भंवर में उलझती चली गई, जहां से उसे आगे बढ़ना और कदम पीछे खींचना दोनों ही असंभव सा लगने लगा। फिर क्या किया सपना ने, पढ़िए यह हृदयस्पर्शी कहानी-
सुनो! सुनो, तुम सुन रहे हो न? कुछ तो कहो- जानती हूँ, नाराज़ हो मुझसे। पर मै भी गलत नहीं। मैं भी ठीक तुम्हारी ही तरह हमारे बारे में ही सोचती हूँ। हम, हमारा भविष्य, हमारा प्यार। तुम समझ रहे हो न, मै क्या बोल रही हूँ? जानते हो हमारा ये सच कई ज़िंदगियाँ बदल सकता है। सब बर्बाद हो जायेगा-सब कुछ। तुम कुछ कहोगे भी या बस यूँ ही मूक बने रहोगे? आखिर कब तक ये सब यूँ ही चलता रहेगा– न जाने कबसे सपना अपने आप से ये सब बुदबुदाए जा रही थी उसे राजा से बहुत कुछ कहना था बहुत सारी अनकही बातें, जो न जाने कब से उसके मन में हलचल मचा रही थीं। वो अपने और राजा के रिश्ते को लेकर बहुत खुश थी बहुत सारे सपने थे उसके जिन्हें वो जीना चाहती थी पर घर की जिम्मेदारियों और अपने पुराने उलझे रिश्ते की वजह से, जैसे वो जीना ही छोड़ चुकी थी उसके सपनों की दुनिया, जिन्हे वो अपनी पहली शादी में जी भरकर जीना चाहती थी। लेकिन कुछ गलत फहमियों की वजह से अब न तो उसका वो पहला प्यार ही बचा था और न ही शादी।
प्रेम नाम था उसका, प्रेम स्वाभाव से बहुत ही कम बोलने वाला लेकिन खुश मिजाज़ लड़का था। सपना जब उससे पहली बार मिली तो लगा था कि बस यही वह शख्स है, जिसके साथ वो अपनी सारी जिंदगी बिताना चाहती है। उससे अपनी पहली मुलाकात के बाद से ही वो न जाने क्या क्या ख्वाब संजोने लगी थी, उसके मन का बावरा पंछी कोसों मील की लम्बी उड़ान भरने लगा था। अब तो उसके जीवन में जैसे सिर्फ प्रेम ही बचा था। इस प्रेम पाश में वह पूरी तरह बंध चुकी थी आज भी जब कभी वो अपने बीते दिन याद करती तो बरबस उसकी ऑंखें छलक जाया करती थीं। प्रेम से शादी हुई तो सपना बस प्रेम की ही होकर रह गयी। एक सुबह से ही वह प्रेम की सेवा में जुट जाती..पति को परमेश्वर मानने लगी थी वह। एक उच्च शिक्षित लड़की थी वो लेकिन माँ ने जो संस्कार दिए और जो कुछ सिखाया और समझाया था, बस वो उसी का पालन कर रही थी। प्रेम की पसंद ब उसकी पसंद बन चुकी थी। शादी को अभी साल भर ही हुआ था कि गोद में एक नन्ही कली मुस्कुरा उठी। परी के आने से उसके जीवन में एक नयी ज़िम्मेदारी और जुड़ चुकी थी। अब सपना का बस एक ही सपना था अपनी नन्ही परी को एक अच्छी परवरिश देना। वो इस मासूम में अपना बचपन फिर से जीने लगी। सब कुछ बेहद खुशनुमा लग रहा था। हद से ज्यादा प्यार करने वाला पति, एक प्यारी सी नटखट बेटी और वो… यही तो है जो किसी को भी अपने जीवन में चाहिए होता है। मगर अचानक न जाने ये क्या होने लगा था उसके जीवन में ..??? मानो किसी की बुरी नज़र उसके हँसते खेलते परिवार को
लग गयी थी…प्रेम का सपना से प्रेम जैसे एक सपना होने लगा था वो अक्सर बात बे बात सपना से नाराज़ रहने लगा। सपना को तो कई बार ये भी नहीं मालूम होता था की आखिर प्रेम उससे किस बात पर खफा है…? अब रोज़ रोज़ के क्लेश की वजह से सपना भी काफी चिड़चिड़ी हो चुकी थी। माँ की दी हुई सारी शिक्षा उसे बेमानी लगने लगी थी। माँ बाबा को भी इस बारे में कुछ नहीं बता सकती थी। वे भी तो अब बूढ़े हो चले थे। बुढ़ापे का दंश और बहु-बेटे से परेशान वो खुद को सँभालते या फिर सपना को सहारा देते?
न जाने क्यों सपना के सपनों का वो राजकुमार उसका एक बुरा सपना बनने लगा था। प्रेम अब उसे हर तरह से प्रताड़ित करने लगा था जब चाहता उसे गले लगा लेता। जब उसका मन होता तो वो उसके तन से अपनी प्यास बुझाकर करवट बदल कर बड़े आराम से खर्राटे लेने लगता। और सपना सारी रात अपने कपड़े समेटते हुए सिसकती रहती। जब उसे गुस्सा आता तो वो सपना को बुरी तरह मारने लगता था। उस बेचारी को ये भी नहीं मालूम होता था कि आखिर वजह क्या है? अपने साथ होने वाले हर अच्छे बुरे की वो वजह जानना चाहती थी पर शादी के सात साल बीत जाने के बाद भी अब तक उसे प्रेम का व्यवहार कुछ समझ नहीं आया। समय बीतते बीतते वो बस एक मिटटी का पुतला बन चुकी थी और उसके एहसास भी धूल में मिल चुके थे इस रिश्ते से अब उसका दम घुटने लगा था वो इन हालातों से तंग आ चुकी थी। भाग जाना चाहती थी वो उस रिश्ते, उस घर, उस हर चीज़ से दूर, जो उससे उसके दुःख का एहसास दिलाती थी। पर वो चाह के भी ऐसा नहीं कर पाई। क्यूंकि उसके पास एक बड़ी ज़िम्मेदारी थी-परी..वो जो उसे जीने की एक आस दिया करती थी। जब वो बहुत परेशान हो जाती तो अपनी बेटी को सीने से लिपटा के घंटों रोया करती। कभी सोचती कि सब कुछ खत्म कर दे- परी को और खुद को भी। क्यूंकि अगर खुद मर भी जाये तो उसकी बेटी का क्या होगा? प्रेम पर अब उसे बिलकुल भरोसा नहीं रह गया था। जब वह उसका होके भी उसका नहीं हुआ, तो वो उसकी बेटी का क्या होगा? बस यही सोचके वो खुद को हर बार कुछ भी गलत करने से रोक लेती थी।
एक दिन बहुत परेशान थी। बस खुद का ध्यान इधर उधर कहीं और लगा लेना चाहती थी। तभी याद आया कि न जाने कितना अरसा हुआ, उसने अपना फेसबुक आईडी चेक नहीं की है .और जब खोला तो ये क्या.ये कौन शख्स है जो उसकी हर पोस्ट को लाइक किये बैठा है..उसे पोक भी किया है, फ्रेंड रिक्वेस्ट भी भेजी है…;यय अब तो देखना ही होगा आखिर ये है कौन? जैसे ही उसने उस लड़के की फोटो क्लिक की तो एक सांवले से लड़के की तस्वीर सामने आ गई। वह उतना आकर्षक नहीं था, मगर फिर भी न जाने क्यों, उससे बात करने का मन हुआ। फिर एक अनजाने से डर का अहसास भी हो रहा था। खुद को रोक लिया उसने…चाह कर भी उसके किसी कमेंट का रिप्लाई नहीं कर पाई थी.. पर ये क्या अब सपना हर रोज़ उस आईडी को खोल-खोल के देखती, उसके बारे में सबकुछ जान लेना चाहती थी। कई दिन ये सिलसिला चलता रहा फिर पता नहीं क्यों सपना ने बिना कुछ सोचे समझे उसकी फ्रेंड रिक्वेस्ट एक्सेप्ट कर ली..और हो गयी उस अंजान शख्स से उसकी ऑनलाइन दोस्ती। अब रोज़ सपना को उस अंजान शख्स के स्टेटस चेक करने की एक अजीब सी लत लग गयी थी। अचानक एक दिन उसका मैसेज सपना को मिला, ‘हेलो कैसी हो आप?’ और सपना ने भी बिना सोचे समझे बस यूँ ही उसे रिप्लाई भी कर दिया। ..अंजान लोगों से दूर रहने वाली सपना को न जाने ये क्या होने लगा था अब वो रोज़ उससे बात करने लगी थी। शुरू में कुछ मिनटों का यह सिलसिला कब घंटों में बदल गया, पता ही नहीं चला। राजा नाम था उसका। शायद प्यार करने लगी थी सपना राजा को। वो एहसास जो वो अपने पति के साथ जीना चाहती थी, अब उसे राजा में दिखने लगा था। वैसे भी, फुर्सत ही कहाँ थी प्रेम को सपना के लिए। प्यार, …जज्बात और अपनापन अपनापन वो अब राजा में तलाश करने लगी थी। फिर से उसके अंदर जीने की एक चाह पैदा हुई थी अब राजा और सपना घंटों फोन पर बातें करते। उसने राजा को अपने बारे में सब कुछ बताया था और राजा ने भी सपना को…वो दोनों ही कहीं न कहीं अपनी अपनी ज़िन्दगी में चोट खाये हुए इंसान थे। शायद इसी वजह से एक दूसरे के इतने करीब आ चुके थे कि दोनों को इस बात का पता बहुत देर से चला की वो अब दिल से एक दूजे के हो चुके हैं। वो दोनों कभी मिले नहीं थे। राजा इंदौर का रहने वाला था और सपना मुंबई की। दोनों का एक दूसरे से मिलना बहुत मुश्किल था लेकिन जहाँ प्यार और जज़्बात जुड़े हों वहां कोई भी अड़चन हो दूर हो ही जाती है।
रोज़ की तरह आज भी सपना राजा से बात कर रही थी अचानक राजा ने व़ह कह दिया, जो उसके कान सुनने के लिए यकायक तैयार नहीं थे। ‘मुझसे शादी करोगी?’.. लेकिन ये क्या आज सपना के मुंह से भी अनायास ही यह सच निकल गया, ‘….आई लव यू राजा… फिर वो घबरा गयी की ये क्या किया? सटी लोक लाज उसने दांव पर लगा दी थी। क्यों इतना प्यार करने लगी थी उस अंजान शख्स से, जिसे उसने आजतक देखा भी नहीं ..मिली नहीं जिसके बारे में सिर्फ सुना ही था। अपने बारे में जितना उसने बताया था, उतना ही तो जानती थी..आखिर ये कर क्या रही है वो.. एक बड़ा सवाल? उधर राजा सपना के इस इकरार से बहुत खुश था। वो जनता था की सपना उस पर इतनी जल्दी भरोसा नहीं करेगी। वह बहुत चोट खाये बैठी है। उसे प्रेम को छोड़कर मुझसे शादी करने में वक्त लगेगा, लेकिन वो इंतज़ार करने को तैयार था। सपना नहीं जानती थी की कभी वो राजा से मिल भी पायेगी या नहीं..लेकिन फिर भी उसका मन प्यार के इस नए समंदर में गोते खाने लगा था। वो एहसास उसे जीने की एक नयी उम्मीद देने लगा था। अब तो उसे प्रेम के उस रूखे रवैये से भी कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता था। उसके मन में अब राजा नाम का एक नया रिश्ता जो पनपने लगा था। आज दो दिन हुए राजा का फ़ोन नहीं आया था वो बहुत बेचैन सी बैठी फोन की घंटी बजने का इंतजार कर रही थी की अचानक उसके फ़ोन की घंटी बजी. ’मेरा राजा, .लव यु..’ कहके उसने फोन पिक किया और फ़ोन सुनते ही जैसे उसे सब कुछ मिल गया..बात ही ऐसी थी। राजा आ रहा था सपना से मिलने मुंबई। उसकी ख़ुशी का कोई ठिकाना नहीं था..राजा के आने में एक हफ्ता बाकी था लेकिन ये एक सप्ताह सपना के लिए जैसे सात जन्म बन चुका था। ..और आखिर राजा और सपना की उस पहली मुलाकात का वो दिन भी आ ही गया। वो दोनों चौपाटी पे मिले। राजा पहले ही वहां पहुंच चुका था। अब तक सपना ने उसे फोटोज में ही देखा था और वही छवि उसके मन में भी कैद थी लेकिन येक्या राजा तो बिलकुल साधारण सा दिखनेवाला एक लड़का था उम्र में सपना से करीब पांच साल छोटा था वो सांवली सी सूरत, बड़ी-बड़ी भूरी आंखें, जैसे सपना को उसके प्यार का सच बयां कर रही हों..उस पर उसकी वो एक बड़ी सी डिंपल वाली मुस्कराहट…सपना उसके होने के एहसास में खोने लगी थी। राजा की बातें उसके कानों में पड़ तो रही थीं, लेकिन उससे ज़्यादा उसके प्यार का एहसास बढ़ने लगा था…और राजा वो तो जैसे सपना को देखके बावरा सा हो गया था। गेहुंए रंग वाली लड़की तिबड़ी ऑंखें और पहनने ओढ़ने का अच्छा सलीका दोनों उस एक घंटे की मुलाकात में जैसे सारी ज़िंदगी जी लेना चाहते थे, लेकिन वक्त को तो नहीं रोक सकते थे इसलिए राजा ने उससे अगले दिन मिलने का वक्त लिया और वापस अपने होटल चला गया। अगले दिन की मुलाकात सिर्फ मुलाकात नहीं थी राजा और सपना के साथ तन्हाई माहौल को रुमानी अहसास प्रदान कर रही थी। फिर राजा ने सपना का हाथ पकड़ा और दोनों होटल रूम के लिए निकल गए। सपना के कदम बरबस खिंचे चले जा रहे थे। शायद दोनों की मुलाकात की वो लालसा अब कुछ और चाहती थी। कमरे में दोनों बेड पर बैठकर कुछ देर साथ बैठे बात करते रहे। और फिर अचानक राजा का हाथ सपना के कमर पर फिसलने लगा। सपना ने आंखें मूंद लीं। राजा सपना को चूमे जा रहा था। सपना की सांसें तेज हो रही थीं। राजा ने सपना को पकड़ कर बिस्तर पर लिटा दिया। लाज के सारे बंधन टूट गए और दोनों एक दूसरे के आगोश में समा गए। सपना चाह कर भी राजा को रोक नहीं पाई। शायद वो भी उस एहसास को पा लेना चाहती थी..कुछ देर में दोनों हम बिस्तर हो चुके थे। आज सपना ने वो महसूस किया था, जो उसने अपनी शादी के आठ साल में भी महसूस नहीं किया। ये जानते हुए भी की वो जो कर रही है वो गलत है लेकिन आज वो अपने कदम पीछे
करने को तैयार नहीं थी..आज वह बहुत खुश थी।
राजा को मुंबई आए तीन दिन हो चुके थे। लेकिन इन तीन दिनों में जैसे सपना ने तीन जन्मों का प्यार हासिल कर लिया था। वह दिन भी आ गया, जब राजा को वापस लौटना था। उसकी आँखों से आंसू जैसे सैलाब बनकर फूट पड़े हों…उसने राजा के बाल रोज़ की तरह अपनी पसंद से बनाए। राजा उसकी बाँहों में बिफर पड़ा..’सपना चलो हम अपनी एक अलग दुनिया बसाएंगे।’’आखिर कब तक बर्दाश्त करोगी तुम ये सब चलो परी को ले के चलें यहाँ से कोसों दूर। मैं उसे पिता का पूरा प्यार दूंगा। हमेशा सिर्फ तुम्हारा और परी का होके रहूँगा। प्लीज चलो इस नर्क से दूर।‘ ..सपना बस आँखों में आंसू लिए राजा की बातें सुनती रही और जाते जाते उससे एक वादा लिया कि हम फिर मिलेंगे ठीक एक साल बाद जब तुम मेरे पास कामयाब होके लौटोगे। एक अच्छा बिज़नेस सेटअप करो, जाओ, अब चले जाओ। ये कहकर सपना अपने राजा से दूर चली गयी..अपने उस घर में जहाँ उसे पूछने वाला कोई न था…राजा की याद में वो अक्सर रोया करती अपनी बेबसी किससे बताती। उधर राजा सपना को हमेशा एक ही बात बोलता,’ सपना मैं हूँ। जब कहोगी
तुम्हे ब्याह के ले जाऊंगा हमारे रिश्ते को मैं नाम दूंगा। बस तुम जब बोलो तब। उसकी इन बातों को याद कर बस सपना बेबसी के आंसू रो देती। राजा को गए अब कई महीने बीत चुके थे और सपना फिर अकेलेपन को जीने लगी थी। पहले की तरह रोज़ दोनों की बात होती और वो एक साल पूरा होने का इंतज़ार…। आज फिर राजा का फ़ोन आया था सपना अगर आज तुमसे कुछ कहूं तो मानोगी। .. हाँ बोलना सुन रही हूँ मैं.. सपना ने कहा। .. उसके बाद राजा की बात सुन वो खुश तो बहुत थी लेकिन उसे समझ नहीं आ रहा था की वो क्या कहे क्या करे…थोड़ा सोचा और फिर सपना ने भी हामी भर दी… आज वो दिन भी आ गया जब राजा और सपना ने शादी कर ली सिर्फ खुद को दिलासा देने के लिए दोनों ने ये ‘झूठा रिश्ता’ बांधा था। मतलब एक नाम दिया था पति पत्नी का। .लेकिन सच तो बस सच होता है बदलता नहीं और सच यही था की वो दुनिया की नज़र में आज भी प्रेम की ब्याहता थी उसके साथ रहती थी। महीने में एक बार ही सही पर वो प्रेम के साथ जिस्मानी होती थी..आज भी यही हुआ था प्रेम शाम से ही सपना के करीब आने की जतन कर रहा था। सपना भी लाख इनकार के बाद भी प्रेम को ज़्यादा देर रोक नहीं पाई। प्रेम उसके शरीर के साथ मनमानी कर रहा था। सपना की आँखों में आंसू थे ये वो आंसू थे जो उसे उसकी बेबसी और उसके कायर होने का एहसास करा रहे थे। व़ह एक साथ दो लोगों के साथ नहीं हो सकती थी राजा तुम कहा हो मुझे आज़ाद करा दो इस रिश्ते से बस तुम चाहिए हो मुझे..यही सब सोचते न जाने कब उसकी आँख लग गयी थी। सुबह जैसे ही प्रेम ऑफिस गया उसने अपना सारा गुस्सा राजा पर उतारा और बोला कि हमारा रिश्ता हमारे लिए चाहे जितना भी जायज़ हो लेकिन दुनिया उसे नहीं मानेगी।….. अगर मुझसे सच में ज़रा भी प्यार है तो मेरे राजा हम अब कभी नहीं मिलेंगे ये वादा करो। अपने सुख के लिए मैं तुम्हे बर्बाद कैसे कर दूँ
तुम्ही बताओ…
उधर से राजा चुपचाप सपना की ये बातें सुनता रहा…अपने गुस्से अपनी झुंझलाहट को वो किस पर उतारता…बस इतना ही बोल पाया ‘सपना मैं एक साल बाद दोबारा आऊंगा तुम्हारे पास। बस तुम थोडी़ हिम्मत जुटा लेना। फ़ोन रखने से पहले सपना बस इतना ही बोल पाई की राजा अगर सच में प्यार है तो हम दोबारा कभी बात नहीं करेंगे अब कभी मुझे फ़ोन मत करना और राजा बस यही बोल पाया की एक साल बाद वो कामयाब होकर अपनी सपना को लेने आएगा.. साल पूरा होने को है..सपना को कहीं न कहीं आज भी अपने राजा का इंतज़ार है…पड़ोस में एक गीत बज रहा है,’घर आ जा परदेसी तेरा देस बुलाए रे।
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