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‘होली’ – मन को निर्मल बनाने का वार्षिक अभियान

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–डा.मोहन चन्द तिवारी

होली का पर्व फाल्गुन मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा को नव संवत्सर तथा वसन्त ऋतु के आगमन की खुशी में मनाया जाने वाला रंग-रंगीला पर्व है। भारत में होली पर्व के प्राचीन इतिहास पर यदि नजर डाली जाए तो वैदिक युग में ‘सोमयाग’ के समापन पर फाल्गुनी पूर्णिमा की तिथि को ‘महाव्रत’ के अनुष्ठान के रूप में हास-परिहास तथा मनोविनोद सम्बन्धी नृत्यगीतों का आयोजन किया जाता था। ऋत्विग्गण इस अवसर पर ‘अभिगर-अपगर’ संवाद के रूप में आपस में हंसी ठिठोली करते थे, यज्ञवेदी के चारों ओर जल से भरे घड़ों को लेकर स्त्रियां नृत्य करती थीं तथा तरह तरह के वाद्य यंत्रों को बजाकर हर्षोल्लास पूर्ण गीत संगीत का आयोजन किया जाता था। पौराणिक युग में इस त्योहार का सम्बन्ध बालकों की अकाल मृत्यु से बचाने वाले ढोण्ढा राक्षसी के दहन के आख्यान से जुड़ गया। इस आख्यान के अनुसार दिव्य वरदान के कारण शक्तिशाली ढोण्ढा राक्षसी को जोर जोर से तालियां बजाकर अश्लील और भद्दे गाने गाकर, फाल्गुनी पूर्णमासी की रात को तीन बार अग्नि की परिक्रमा करके भस्म किया जा सकता था। तभी से होली के अवसर पर होलिका दहन की परम्परा प्रारम्भ हुई। एक दूसरी पौराणिक मान्यता के अनुसार हिरण्यकश्यपु की बहन होलिका के दहन की कथा भी इस पर्व के साथ जुड़ी है।

होली का पर्व अपने उद्भवकाल से ही जहां हास-परिहास एवं मनुष्य की आसुरी वृत्तियों के दहन-विरचेन का पर्व रहा है वहां यह पर्व मनुष्य के अंतर्मन में वर्ष भर इकठ्ठा हुए कूड़ा करकट को भस्म करने का वार्षिक अनुष्ठान भी है।इसी लिए प्रति वर्ष इधर उधर बेकार पड़ी हुई लकड़ियों और घास फूस को जलाकर हम लोग होलिका रूपी आसुरी वृत्तियों का दहन करते है ताकि निर्मल ह्रदय से दूसरे दिन रंग रंगीली होली खेल सकें।
होली सामाजिक समरसता, जातिगत सौहार्द और धार्मिक सद्भावना को प्रोत्साहित करने का भी लोकपर्व है। यह भारत देश की खूबी है कि यहां विभिन्न धर्मों के लोकपर्व चाहे वह होली हो या ईद या फिर क्रिसमश सदैव राष्ट्रीय एकता धार्मिक सद्भावना, सामाजिक समरसता और आपसी भाईचारे को प्रोत्साहित करने में अहम भूमिका का निर्वाह करते आए हैं।

भारतीय संस्कृति के वैश्विक प्रचार प्रसार के दौरान होली के पर्व ने दूसरे देशों की संस्कृतियों को भी प्रभावित किया। वहां की लोक परम्पराओं से ताल मेल बैठाते हुए सामाजिक समरसता और आपसी भाईचारे की भावना को एक सालाना उत्सव का रूप दिया। प्रवासी भारतीय जहाँ-जहाँ जाकर बसे हैं वहाँ वहाँ होली की परंपरा पाई जाती है। पाकिस्तान, बंगलादेश, श्री लंका और मारिशस में भारतीय परंपरा के अनुरूप ही होली मनाई जाती है। विदेशों में कई सारे हिंदू संगठन और सांस्कृतिक संगठन नृत्य, संगीत और सांस्कृतिक उत्सवों के ज़रिए फगुआ मनाते हैं। ट्रिनीडाड एंड टोबैगो में होली को काफ़ी कुछ उसी तरह से मनाया जाता है, जैसे भारत में मनाया जाता है। सभी मित्रों को राष्ट्रीय एकता, सामाजिक समरसता और धार्मिक सद्भावना का सन्देश देने वाली होली की हार्दिक शुभ कामनाएं ।

आप के शब्द

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1 Comment to ‘होली’ – मन को निर्मल बनाने का वार्षिक अभियान

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