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क्यों आज भी है हार्ड कवर बुक्स ई-बुक्स पर भारी

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लेखक: रश्मित कौर

कहते है किताबें हमारी सच्ची मित्र् होती है हम कितने भी बड़े हो जाए पर जिन्दगी के हर मोड़ पर ये किताबें हमारा साथ हमेशा देती है। उस मोड़ पर भी यह हमारे साथ खड़ी दिखती है जहा सब साथ छोड़ जाते है यानि चाहे बात करें बुढ़ापे के दिन सांझा करने की या बात करे विपरीत परिस्थितियों के उन दिनों की जब अकेलापन इंसान को हर ओर से बेकार बनाता है और मानसिक रूप से इंसान को खाने लगता है। ऐसे में किताबें ही हमें सहारा देती है और जिन्दगी में आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करती है। ओर तो ओर हर साल व्यक्ति के लिए किताब एक कल्प वृक्ष का काम भी करती है क्योंकि उन्हीं की मदद से आज हर साल व्यक्ति गुमनाम से पहचान के शिखर तक का रास्ता तय करता है। इसलिए आज भी किताबों को खूब पसंद किया जाता है। चाहे बात करें धार्मिक किताबों की या बात हों मैगजीन या किस्से कहानियों की आज की फैशनेबुल और मॉर्डन दुनिया में भी ये किताबें अपनी जगह बखूब बनाए हुई है।

वैसे देखे तो आज का जमाना बेहद फ़ास्ट या कहें वन किल्क हो गया है। यानि आप जिस भी चीज की कल्पना मन में करते है वो सभी इंटरनेट पर आसानी से उपल्बध है । साहित्य का यह रूप देख कर लगता है मानो हम बेहद डिजिटल युग मे जी रहे है लेकिन आज भी युवा हो, बच्चा हो या हो कोई बुढ़ा व्यक्ति आज भी वो ई बुक से ज्यादा रूचि बुक की हार्ड कापी में दिखा रहा है और अरसे से चले आ रहे ये चलन अब भी यों ही चल रहे है।

सकून भरा अहसास

किताबों को जहा सच्चा मित्र् कहा जाता है वह यह भी कहा जाता है कि किताबों पर किया गया खर्चा कभी व्यर्थ नही जाता क्योंकि हमेशा वो हमें कुछ न कुछ जरूर दे जाती है। इसलिए इटरनेट के जमाने में भी रंग बिरंगे कागज में लिपटी रंगीन तस्वीरो से सजी बुक अब भी ई -बुकस के मुकाबले ज्यादा पसंद की जा रही है इसका एक बहुत सीधा सा कारण है कि जहॉं हाथ में लेकर किताब केा पढ़ने में जो सुकून और आत्म संतुष्टि मिलती है वो संतुष्टि आपको इंटरनेट पर साहित्य पढने से नहीं मिल सकती क्योंकि जितनी देर आप खुद बैठकर किताब पढने का मजा ले सकते हो उतनी देर आप कम्पयूटर या मोबाईल पर नहीं पढ़ सकते।

टाइम पास
मेट्रो सिटीज की बात करें तो लोग आज अत्यधिक व्यस्त होने के कारण ई -बुक का बहुत ज्यादा इस्तेमाल करते है। राजधानी दिल्ली में तो आलम यह है कि सुबह की पाठ पूजा भी लोग अपने मोबाईल ऐप के जरिए ही ट्रेवल के दौरान कर लेते है ऐसे में कुछ लोग ई-बुक को टाइम की बचत कहते है तेा कुछ का कहना है कि ट्रेवल में टाइम पास करने के लिए ई-बुक अच्छा ऑप्शन है लेकिन कुछ टाईम के लिए ही क्योंकि ज्यादा देर के लिए ये भी बोझिल होने लगता है।

टिकाव / रिलैक्स
हार्ड-कॉपी किताबों में एक स्थायित्व एक टिकाव होता है जो जिससे किसी भी व्यक्ति को लगाव व अपनेपन का अहसास करवा जाती है जो ई-बुक में नहीं मिल सकता हालाकि आज तमाम कम्पनियां ये दावा करती है कि ई-बुक की बहुत डिमांड है लेकिन इस सच को भी नकारा नहीं जा सकता कि आज भी किताबों का बाजार अपने उफान पर है आज भी लोग तोहफों के तौर पर इसे देना एक अच्छी आदत समझते है । किताबों की ये इंम्पोटेन्स इस बात से भी लगाई जा सकती है कि आज भी बुक फेयर में लोगों का तांता वैसे ही लगता है जैसे कुछ समय पहले लगा करता था। और इसलिए आज भी लाईब्ररी का इस्तेमाल व महत्व वैसे ही बना हुआ है।

गुमनाम साहित्य
ई-बुक्स के साथ एक समस्या और है कि आज इतना ज्यादा कम्पटीशन है कि ओनलाईन बाजार में कई साहित्यकार खड़े है जिससे हम आप जैसे पाठक चकरा जाते है कि किस साहित्यकार को पढ़े ऐसे में समस्या आती है गुमनाम साहित्य की । क्योंकि हार्ड कॉपी किताबों के लिए जो पूरा प्रोसेस करना पड़ता है वही प्रोसेस ओनलाईन साहित्य को छपवाने के लिए किया गया हो यह जरूरी नहीं है। ऐेसे में कई गुमनाम कवि , व लेखक पैदा हो जाते है जो साहित्य व साहित्य से जुड़े पाठकों को भ्रमित करते है।

तुम्हीं तो मेरी दोस्त हो……….
27 वर्षीय रेलवे ऑफिसर चंदना मुखर्जी का कहना है कि आज भी बालकनी में मै और मेरी किताब छुटटी के दिन हमेंज़ा साथ टाईम बिताते है और मैं हर रविवार सुबह या शाम जब भी समय मिले मैं जरूर मेरी सहेली यानि बुकस के साथ समय बिताती हॅूं । और हॉं दिल्ली में लगने वाले बुक फेयर को मैं कभी मिस नहीं करती क्योंकि वह हमेशा मेरे दिल के करीब रहा है। और आज मैं जितनी भी डिजिटल क्यों न हो जाउॅं लेकिन किताबों के मामले में मैं आज भी ऐसे ही रहना चाहती हू और यदि आप देख सके तो मेरी तमाम अलमारी आज भी किताबों से भरी है।

इसी तरह पूजा का कहना है कि मेरे बॉस वैसे तो तमाम सोशल नेटवर्किंग साईट से जुड़े है चाहे बात वॉट्स अप की हो, ट्विटर या फेसबुक की हो सभी के लिए वह बेहद एक्साईटेड रहते है और अपटूडेट भी, लेकिन फिर भी किताबों के मामले में नो कोम्प्रोमाईज़ क्योंकि ऑलवेज उनकी टेबल पर उनकी पसंदीदा किताबें पड़ी रहती है। और तो और उनका किताबों से प्यार का अंदाजा तो उनकी गाड़ी में रखी किताबों को देख कर भी लगाया जा सकता है।

आप के शब्द

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25 Comments to क्यों आज भी है हार्ड कवर बुक्स ई-बुक्स पर भारी

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