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‘हम स्टूडेंट्स की उम्मीदों को नए पंख लगाते हैं’-अंकुल सर

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यूपी के हरदोई से वर्ष 2010 में दिल्ली आए अंकुल सिंह भदौरिया ने कभी यह सोचा भी नहीं था कि एक दिन वह ‘अंकुल सर’ के रूप में मशहूर हो जाएंगे। राजधानी में प्रतियोगिता परीक्षाओं की तैयारी का सबसे बड़ा हब कहे जाने वाले मुखर्जी नगर में यही उनकी पहचान है। वे अपने अंग्रेजी पढ़ाने की रोचक शैली के कारण इतने लोकप्रिय हो चुके हैं कि उनके पूर्व छात्र उनके नाम से कोचिंग एकेडमी तक खोलने लगे हैं। दरअसल, महज तीन स्‍टूडेंट्स से शुरु हुई उनकी ‘क्‍लासिक क्‍लासेज’ कोचिंग सेंटर में छात्रों की संख्‍या नौ सौ से ज्‍यादा हो गई है। इंग्लिश लिटरेचर में एमए अंकुल सर की पॉपुलैरिटी का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि विभिन्‍न प्रतियोगी परीक्षाओं में अंग्रेजी भाषा की तैयारी के लिए न केवल विद्यार्थी बल्कि शिक्षक तक उनकी कक्षाओं में देखे जा सकते हैं। उनके लिए शिक्षा कोई व्‍यापार नहीं है। बिना किसी विशेष प्रचार के छोटे से अंतराल में वे विद्यार्थियों की उम्‍मीदों और सपनों को नए पंख लगाने में जुटे हैं। ‘अंकुल सर’ से बात की वरिष्‍ठ पत्रकार मुनमुन प्रसाद श्रीवास्तव ने। प्रस्‍तुत है बातचीत के प्रमुख अंश

कभी सोचा था कि अंग्रेजी पढ़ाने में आप विद्यार्थियों के इतने चहेते बन जाएंगे?
बिल्‍कुल नहीं(मुस्‍कुराते हुए)। आपको यह जानकर हैरानी होगी की क्‍लास में मैं अपने स्‍टूडेंट्स से कहता हूं कि मेरा पढ़ाना यदि समझ में आए, तो मुझसे पढ़ो। यदि मेरे पढ़ाने से उनको फायदा होता है, तो पढ़ें, बेकार में पैसा और समय बर्बाद करने से क्‍या फायदा? मगर शायद विद्यार्थियों को मेरे पढ़ाने का तरीका भाता है। इसीलिए, जनवरी 2014 में हमने तीन स्‍टूडेंट्स से अपनी ‘क्‍लासिक क्‍लासेज’ एकेडमी शुरू की और आज विद्यार्थियों की संख्‍या नौ सौ तक पहुंच गई है। मेरी क्‍लास में औसतन दौ सौ विद्यार्थी एक बार में होते हैं।

Ankul Sir

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सुना है कि आपका इंस्‍टीट्यूट ‘डेमो क्लास’ में आए किसी प्रवेशार्थी को प्रवेश के लिए कॉल नहीं करता?
आपने बिल्‍कुल ठीक सुना है। हम अपनी ‘डेमो क्लास’ अटैंड करने आए किसी भी संभावित प्रवेशार्थी को बाद में अपनी ओर से कोई कॉल नहीं करते। हमारा मानना है‍ कि हमको अपनी क्‍लास में उन विद्यार्थियों को अंग्रेजी पढ़ानी है, जो पहले से अंग्रेजी जानते हैं और उनको प्रतियोगिता परीक्षा के लिहाज से अंग्रेजी भाषा की तैयारी करनी है। इसलिए वे अच्‍छी तरह समझते हैं कि कौन उनको बेहतर तैयारी करवा सकता है और कौन नहीं। इसलिए एकेडमी में प्रवेश लेने का फैसला विद्यार्थियों पर ही छोड़ देना चाहिए, उनको एडमिशन कॉल करके बेवजह किसी तरह का दबाव बनाना ठीक नहीं। यदि आपके पढ़ाने से स्‍टूडेंट्स को फायदा होगा, तो वे आपसे ही पढ़ेंगे।

आपकी यूएसपी क्या है?
मेरी कोशिश इंग्लिश ग्रामर के फंडामेंटल्‍स का प्रयोग करके अंग्रेजी सिखाने की होती है। दरअसल, इंग्लिश एक लैंग्‍वेज ही तो है कोई हव्‍वा नहीं, बस सीखने-समझने की अप्रोच सही होनी चाहिए। मुझे लगता है कि रटना और रटाना सबसे खतरनाक काम होता है। मेरा फोकस समझाने पर होता है। यदि आपको कोई चीज समझ आ जाए, तो आप उसे कभी नहीं भूलते।

क्‍या आप इंग्लिश लैंग्‍वेज ट्रेनर ही बनना चाहते थे?
पहले से कुछ सोचा नहीं था। बारहवीं मैंने साइंस स्‍ट्रीम से की।आगे बीएससी करना चाहता था। उसके लिए शाहजहांपुर जाना पड़ता, क्‍योंकि साइंस के डिग्री कॉलेज वहीं थे। कुछ वजहों से ऐसा संभव नहीं हो पाया। एक साल निकल गया। फि‍र बीए में ही दाखिला ले लिया। थर्ड ईयर में विषय के तौर पर इंग्लिश लिटरेचर और एजुकेशन लिया। विषय में रुचि बढ़ती गई, जिसने मुझे अंग्रेजी का शिक्षक बना दिया।
2010 में नौकरी की तलाश में दिल्‍ली का रुख किया। यहां पढ़ाना शुरू किया। मुखर्जी नगर के एक प्रतिष्ठित कोचिंग एकेडमी में प्रतियोगिता परीक्षा के लिए अंग्रेजी पढ़ाना शुरू किया। धीरे-धीरे छात्रों को मेरा पढ़ाना पसंद आने लगा। अंकुल को मेरे विद्यार्थियों ने ‘अंकुल सर’ बना दिया। मुझे हैरानी तो तब हुई जब सोनीपत में मेरे कुछ पूर्व विद्यार्थियों ने मेरे नाम से ‘अंकुल एकेडमी’ खोल दी। कभी सोचा नहीं था कि मेरे स्‍टूडेंट्स मुझे इतना प्‍यार देंगे।

जब आप इतने पॉपुलर हैं, तो आपके कोचिंग की फीस भी अधिक होगी?
बिल्‍कुल नहीं। हम एक विद्यार्थी से चार महीने के कैप्‍सूल कोर्स की फीस 10 हजार रुपए लेते हैं। यह सबके लिए बराबर है। किसी को कोई डिस्‍काउंट नहीं मिलता। हम इसमें यकीन नहीं रखते कि करें कुछ और बताएं कुछ और।

प्रतियोगिता परीक्षाओं में आपके विद्यार्थी अच्‍छी रैंक प्राप्त कर रहे हैं। फि‍र आप उनका प्रचार क्यों नहीं करते?
(हंसते हुए) पढ़ाना अपनी जगह है और प्रचार पाना अपनी जगह। यदि किसी स्‍टूडेंट की अच्‍छी रैंकिंग आती है, तो यह उसकी उपलब्धि है। कोचिंग क्‍लास तो बस उसका लक्ष्‍य की ओर मार्गदर्शन करने के लिए है। दूसरे शब्‍दों में कहें तो हम विद्यार्थियों की उम्‍मीदों को नए पंख लगाते हैं, उनके सपने पूरे हों, यही हमारा लक्ष्‍य है।

एक विद्यार्थी में किस तरह के गुण होने चाहिए?
मेरी नजर में किसी भी स्‍टूडेंट को जिज्ञासु होना चाहिए। उसमें हमेशा कुछ नया जानने और समझने की ललक होनी चाहिए। उसे महत्‍वाकांक्षी भी होना चाहिए। इससे वह अपने लक्ष्‍य के प्रति कहीं अधिक फोकस्‍ड रहेगा। वैसे, मेरा मानना है कि डिग्री और काबिलियत में बहुत फर्क होता है। यदि आपमें काबिलियत है, तो सफलता आपके कदम जरूर चूमती है।

भविष्‍य में मुखर्जी नगर के अलावा क्‍लासिक क्‍लासेज की ब्रांच दिल्‍ली के बाहर भी खोलने की योजना है?
आने वाले समय में हमारी पटना, इलाहाबाद और जयपुर में कोचिंग एकेडमी खोलने की योजना है।

ईश्‍वर में कितनी आस्था है?
पूरी तरह। संसार में एक शक्ति है, जो सब चला रही है। उसने आपके लिए बहुत कुछ ऐसा सोच रखा होता है, जिसकी कई बार आप कल्‍पना भी नहीं करते। बस, आपको धैर्य रखना होता है।

आप के शब्द

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26 Comments to ‘हम स्टूडेंट्स की उम्मीदों को नए पंख लगाते हैं’-अंकुल सर

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