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पूर्व दिशा में हो घर का द्वार, तो भरा रहे भंडार

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लेखकः प्रख्यात ज्योतिषी एवं वास्तु विशेषज्ञ पं. जयशंकर चतुर्वेदीः

पत्रिका के पिछले अंक में आपने जाना कि वास्तुशास्त्र के आधार पर आपका मकान कैसा होना चाहिए इसके अंतर्गत आपको भूमि के विभिन्न प्रकार और भवन बनाते समय रखने वाली सावधानियों के बारे बारे में विस्तार से बताया गया। इसी श्रृंखला के अंतर्गत इस बार पढि़ए दिशाओं के बारे में। मकान बनाने में जहां भूमि का प्रकार अपना महत्व रखता है। वहीं दिशाओं को लेकर भी सावधानी रखने की आवश्यकता होती है। दरअसल, वास्तु शास्त्र में मुख्य रूप से आठ दिशाओं एवं कोण को ही महत्व दिया गया है। जो इस प्रकार हैः (1) पूर्व दिशा (2) उत्तर दिशा (3) पश्चिम दिशा (4) दक्षिण दिशा (5) ईशाण कोण (6) अग्नि कोण (7) नेऋत कोण (8) वायब्य कोण।

वास्तु शास्त्र में प्रत्येक दिशा या कोण का अपना महत्व है। इसलिए मकान बनाते समय किस दिशा या कोण में क्या और क्यों रहना चाहिये, इसका विवरण इस प्रकार से हैः

(1) पूर्व दिशा—जिस दिशा में सूर्य उदय होता है उसे पूर्व दिशा कहते हैं। यह दिशा सभी दिशाओं में सर्वश्रेष्ठ मानी जाती है। क्योंकि इसी दिशा में मनुष्य या पृथ्वी पर रहने वाले समस्त जीव जन्तुओं को प्रकाश प्राप्त होता जो कि शक्ति तथा नव जीवन का संचार प्रदान करता है। इस दिशा का स्वामी सूर्य होता है और सूर्य पूरे ब्रह्मांड का तथा पूरी दिशाओं का संचालक ग्रह माना जाता है। सूर्य समस्त ग्रहों का राजा माना गया है। मकान बनाते समय पूर्व दिशा में जगह इतना खुला जरूर रखे कि सूर्य का प्रकाश घर इत्यादि में आसानी से आ सके। इस दिशा को हमेशा शुद्ध रखना चाहिये। इस दिशा में किसी भी स्थिति में शौचालय इत्यादि नहीं बनवाना चाहिये अगर कोई भी व्यक्ति शौचालय अगर ईशान या अग्नि कोण या पूर्व के मध्य दिशा में बनवा लिया है। तो निश्चित उस व्यक्ति के घर का मुख्य सदस्य हृदय रोग या हड्डी संबंधी रोगों से ग्रसित देखे गये है। या फिर वहां वंश वृद्धि नहीं होती। या फिर होती है, तो अपंगता देखी जा सकती है। इसलिये इस दिशा में शौचालय इत्यादि बनवाना वास्तु शास्त्र के प्रमुख दोष माने जाते हैं। पूर्व दिशा में मुख्य द्वार शुभदायक होता है इसे विजयद्वार भी कहते हैं।

(2) उत्तर दिशा—इस दिशा को देव दिशा कही जाती है। इस दिशा में जब सूर्य के आने के बाद किसी मनुष्य की मृत्यु होती है तो उसे मोक्ष प्राप्त होता है, इसलिये इस दिशा को देव दिशा कहा जाता है। उत्तर दिशा का स्वामी बुध होते हैं और बुध ग्रह ज्ञान तथा बुद्धि का स्वामी होते है।

(3) पश्चिम दिशा—इस दिशा में सूर्यास्त होता है। इस दिशा से हमें धन एवं अन्न की प्राप्ति होती है। पश्चिम की हवा से हमारी प्रकृति के अन्दर स्फूर्ति आती है। इस दिशा का स्वामी शनि ग्रह होते है। शनि बहुत समझदार बुजुर्ग एवं बैरागी किस्म के ग्रह है। शनि से हमें लम्बी बीमारियाँ प्राप्त होती हैं। अगर पश्चिम दिशा मकान का मुख्य द्वार हो तो उसे मकरद्वार कहते है।

(4) दक्षिण दिशा—सूर्य पूर्व दिशा से उदय होते हैं, और दक्षिण दिशा से होते हुये पश्चिम दिशा में अस्त होते है। जब सूर्य दक्षिण दिशा में पहुँचते है तब सूर्य मध्य यानी पूर्ण प्रकाशमय रहते है। इसलिये यह दिशा ज्यादा गर्म रहती है। दक्षिण में मकान की दीवार ज्यादा बड़ी एवं मजबूत हो तो दीवार आपके मकान के तापक्रम को संतुलित रखता है। इस दिशा को हमेशा बन्द रखनी चाहिये ताकि ताप से मकाने में रहने वाले को राहत मिले। इस दिशा के स्वामी मंगल हैं जो साहस, पराक्रम तथा रक्त का कारक ग्रह होते है। अगर यह दिशा वास्तु के अनुरूप शुद्ध हो तो साहस पराक्रम रक्त इत्यादि ठीक रहता है। अगर अशुद्ध हो तो इन सभी में कमी देखने को मिलेगी। अगर इस दिशा में मुख्य द्वार हो तो इसे यम द्वार कहते हैं।
इसी प्रकार दो दिशाओं के बीच को मिलन स्थल को कोणों से इंगित किया गया है जो इस प्रकार है—

(5) ईशान कोण—पूर्व एवं उत्तर दिशा के मिलन—स्थल को ईशान कोण कहते है। इस दिशा में पूर्व तथा उत्तर दिशा के गुणों का मिश्रण होता है। इसलिये आध्यात्मिक कार्य एवं पढ़ाई लिखाई के लिए यह दिशा अति उत्तम माना जाता है। इस दिशा का कमरा पूजा पाठ, साधना, मंदिर का स्थान होना चाहिये, ईशान कोण से हमें ज्ञान, सुख, समृद्धि एवं अच्छा स्वास्थ्य प्राप्त होता है। इस दिशा का स्वामी ग्रह बृहस्पति होते हैं। यह ग्रह ज्ञान, राजनीति, राजयोग, पूजा पाठ—साधना एवं धन का कारण ग्रह होते है। इसलिये इस दिशा कोण के शुद्ध रखा जाता है।

(6) अग्नि कोण—यह कोण पूर्व और दक्षिण दिशा के गुणों के मिश्रण से बनता है। अग्नि का स्वाभाव उर्द्धगामी होता है। तथा निरन्तर फैलना इसका स्वभाव है। इसलिए इस दिशा से घर में सम्मान एवं तरक्की मिलती है। इस दिशा में अग्नि से संबंधित कार्य किया जाता है। जैसे रसोई घर, हीटर मोटर, गैस, लालटेन, बिजली का मिटर, इसी दिशा में लगाना चाहिये। तथा जितने की बिजली से या अग्नि से संबंधित मशीन भी जिनसे ऊर्जा उत्पन्न होती है उन सब यंत्रों को इसी दिशा में लगाना चाहिये। इस दिशा का स्वामी शुक्र होते है जो भोग कारक ग्रह है। गृहस्थ, संतानवृद्धि, वासना का भी कारक है। यह दिशा में वास्तु के सूत्रों के अनुसार घर बनवाने से शुक्र मजबूत रहता है तथा वंशवृद्धि होता देखा गया है।

(7) नैऋत कोण—यह कोण दक्षिण तथा पश्चिम दिशा के गुणों के मिश्रण वाला कोण होता है। इस दिशा में अग्नि तथा ठंड (ब्वसक) का मिश्रण होता है जो रूकावट एवं विरोध का प्रतीक होता है। इसलिये इस दिशा में हमेशा शौचालय, स्नानघर, सीवर रखना चाहिये। यह दिशा हमेशा बीमारी का संदेश देती है क्योंकि गर्म—सर्द का मिलान हमेशा बीमारी का संदेश देती है। इस दिशा में कभी भी रसोईघर, पूजाघर, अध्ययन कक्ष नहीं बनाना चाहिये। इस दिशा का स्वामी राहु होता है। राहु भी शनि जैसा दीर्घजीवी बीमारियों का मालिक माना जाता है।

(8) वायब्यव कोण—यह कोना पश्चिम तथा उत्तर दिशा को गुणों का मिश्रण होता है। इसे कुछ लोग भण्डार कोण भी कहते हैं। इस दिशा के मालिक कुबेर जी हैं जो हमेशा धन—अन्न, वनस्पति देते है। इस दिशा में हमेशा अन्न रखने का कमरा बनता है। इस कोण में गंदगी नहीं होनी चाहिये नहीं तो जातक प्रभु कृपा से वंचित हो जाता है। इसे शुद्ध रखना चाहिये। इस दिशा को ग्रह चन्द्रमा होते हैं। जो शीतलता, अच्छे विचार, शुद्धता धन की वृद्धि देते हैं।

आप के शब्द

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19 Comments to पूर्व दिशा में हो घर का द्वार, तो भरा रहे भंडार

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